राधा अष्टमी हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, इस पर्व को श्री राधा रानी जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह की अष्टमी तिथि को बनाया जाता है, तथा इस अवसर पर राधा-रानी और श्री कृष्ण की पुजा अर्चना व व्रत किया जाता है।
- मान्यताओ के अनुसार राधा जी का जन्म वृषभानुपूरी में उनके ननिहाल में हुआ था तथा वेदों एवं ग्रंथों में इनका ‘कृष्ण बल्लभा’ नाम से किया जाता है।
- हर साल राधा अष्टमी भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
- राधा अष्टमी पर्व का महत्व श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व के समान ही है।
- राधा अष्टमी पर्व श्री कृष्ण जन्माष्टमी के लगभग 2 सप्ताह बाद भाद्रपद माह( अगस्त या सितंबर माह) की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।
- राधा अष्टमी पर कृष्ण व राधा रानी की की पूजा और आराधना करने से घर में सुख-समृद्धि, व सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह, धन ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
- राधा अष्टमी व्रत में 24 घंटे का व्रत किया जाता है, व व्रती इच्छानुसार किसी भी समय फलाहार करता है।
राधा अष्टमी 2024 | Radhashtami 2024
वर्ष 2024 में राधा अष्टमी 11 सितंबर 2024 दिन बुधवार को पड रही है। इस अष्टमी तिथि का आरंभ 10 सितंबर 2024 को 11:35 मिनट पर होगा, तथा समाप्ति 11 सितंबर 2024 को 11:47 मिनट पर होगा।
राधा अष्टमी व्रत | Radhashtami Vrat
- सर्वप्रथम स्नान आदि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करे।
- तत्पश्चात राधा रानी और कृष्ण जी की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कर विराजमान कराये।
- एक कलश में जल भरकर उसमे सिक्का डाले तथा आम के पल्लो और उस पर नारियल रखे।
- इसके बाद शुद्ध घी का दीपक जलाये।
- इसके बाद राधा रानी का शृंगार करना चाहिए, तिलक करे।
- पुष्प की माला चढ़ाए और पुष्प अर्पित करे।
- इसके बाद भोग लगाये तुलसी दल अर्पित करना चाहिए।
- पूजा के बाद अंत में राधा कृष्ण की आरती करे।
राधा अष्टमी क्यों मनाया जाता है? | Radhashtami Kyu Manaya Jata Hai?
राधा अष्टमी भगवान श्री कृष्ण की पत्नी के जन्मोत्सव के रूप में प्रतिवर्ष भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को धूम धाम से मनाया जाता है। राधा अष्टमी या राधा जन्मोत्सव श्री कृष्ण जन्माष्टमी के 2 सप्ताह बाद बाद अष्टमी को मनाई जाती है।
कथा | Radhashtami katha
एक बार राधा जी स्वर्ग के बाहर गई थी, तो भगवान श्री कृष्ण विरजा नमक सखी के साथ घूम रहे थे। तभी राधा वापस आ गई, और भगवान कृष्ण के साथ राधा को देख नाराज हो गए। गुस्से में राधा जी विरजा को बुरा भला बोल दिया।
बुरा-भला सुनकर विरजा एक नदी के रूप में बहने लगती है। राधा के इस व्यवहार के कारण कृष्ण के मित्र सुदामा को बहुत बुरा लगा और उन्होंने राधा जी को मनुष्य योनि में पैदा होने का श्राप दे दिया।
इसके बाद राधा जी ने सुदामा को राक्षस होने का श्राप दिया। श्राप के कारण सुदामा शंखचुड नामक राक्षस बन गया, जिसका वध भगवान शिव ने किया था। तथा सुदामा के श्राप के कारण राधा को पृथ्वी पर जन्म लेकर भगवान कृष्ण से वियोग श्राप को सहना पडा।