काशी विश्वनाथ मंदिर, भगवान शिव का वाराणसी में स्थित हजारो वर्ष पुराना एक प्रसिद मंदिर है। यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, मान्यता है की इस मंदिर में भगवान शिव स्वयं ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान है।
यहाँ प्रतिदिन भगवान शिव की 5 बार आरती की जाती है। यह मंदिर वाराणसी शहर में गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है।
प्राचीन काल में वाराणसी शहर को काशी नाम से जाना जाता था, तथा इस मंदिर में भगवान विश्वनाथ जी अर्थात ‘ब्रह्मांड के भगवान’ विराजमान है, इसीलिए यह मंदिर ‘काशी विश्वनाथ मंदिर’ के नाम से शिव भक्तों में अत्यंत लोकप्रिय है।
- काशी विश्वनाथ मंदिर हिन्दू धर्म का एक प्रसिद्ध मंदिर है, जो की लगभग हजार वर्ष पुराना है।
- काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन सुबह 3:00 से शुरू हो जाते है, और रात्री के 11:00 बजे तक मंदिर खुले रहते है।
- पौराणिक मान्यता है, की इस मंदिर में भगवान शिव माता पार्वती के साथ उनके घर से लौट रहे थे, उस समय वह स्वयं को ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित कर लिए थे।
- वाराणसी के दशाश्मेघ घाट पर प्रतिदिन शाम को होने वाली गंगा आरती सभी श्रधालुओ का मन मोह लेती है।
- महशिवरात्री पर्व पर भगवान शिव की शोभा यात्रा अनेक मंदिरों से ढोल-नगाड़े नाच गाने के साथ काशी विश्वंनाथ मंदिर तक जाती है।
- मान्यता है की इस मंदिर में दर्शन व गंगा में स्नान करने से भगवान शिव व माँ गंगा भक्तों की सारी मनोकामना पूर्ण करती है।
- इतिहास हमे यह बताता है काशी विश्वनाथ मंदिर का समय-समय पर अनेक मुगल शासकों द्वारा तोड़ा भी गया है व हिन्दू शासकों द्वारा इसका पुनः निर्माण भी किया गया है।
- वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण रानी अहिल्याबाई ने कराया था।
- इसके बाद इस मंदिर को 1835 में महाराजा रणजीत सिंह ने कराया था।
इतिहास | History
पौराणिक मान्यता है की एक बार माता पार्वती को अपने मायके में अच्छा नहीं लग रहा था, इसीलिए उन्होंने भगवान शिव से उन्हे अपने साथ ले जाने की जीद करने लगी। तब भगवान शिव माता पर्वती को लेने आए।
माँ पार्वती को लेकर भगवान शिव लौटते समय काशी पहुचे व स्वयं को एक ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित कर लिए।
इस मंदिर को समय-समय पर कई मुगल शासक द्वारा तुड़वाया गया, और हिन्दू शासकों या राजाओ द्वारा पुनः इसे बनवाया गया।
वर्तमान में स्थित वाराणसी में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर रानी अहिल्याबाई ने बनवाया था। तथा बाद में महाराजा रणजीत सिंह ने 1835 में 1000 किलो ग्राम सोना देकर मंदिर को पुनः पुनः निर्माण भी किया गया किया।
काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट | Kashi Vishwanath Temple Trustee
काशी विश्वनाथ मंदिर का पहले ट्रस्टी के रूप में तमिल के वेंकट रमन धनपति की नियुक्ति की गई है। यह घोषणा काशी विश्वनाथ मंदिर की तरफ से काशी – तमिल संगम से पूर्व ही कर दी गई थी।
वेंकट रमन धनपति के पिता कृष्णमूर्ति धनपति के वैदिक शस्त्रों के बहुत बड़े जानकार व ज्ञाता थे। संन 2015 में उन्हे भारतीय शाश्त्रो और संस्कृत के ज्ञान के क्षेत्र में प्रवीणता के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
वेंकट रमन धनपति की 5 पीढ़िया इस मंदिर की सेवा पूजा पाठ से कई वर्षों से जुड़ी है।
काशी विश्वनाथ मंदिर समय | Kashi Vishwanath Temple Time
काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन का समय दिनभर है, लेकिन ज्योतिर्लिंग की पूजा और आरती का समय सुबह और शाम को निर्धारित होता है। सामान्यतः, सुबह की आरती सुबह 4:00 बजे से होती है और शाम की आरती रात्रि 7:00 बजे से होती है। यह समय स्थानीय परिस्थितियों और संग्रह के अनुसार बदल सकता है, इसलिए आपको स्थानीय प्रशासन या मंदिर प्रबंधन से संपर्क करने के लिए उनकी आधिकारिक वेबसाइट या अन्य स्रोतों की जांच करनी चाहिए।
काशी विश्वनाथ से कालभैरव की दूरी | Kashi Vishwanath to kal bhairav Distance
काशी विश्वनाथ मंदिर से काल भैरव मंदिर की दूरी मात्र 1 किलोमीटर है। तथा वाराणसी जंक्शन से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
काल भैरव भगवान शिव का एक रौद्र रूप है जो मुंडों या खोपड़ी की माला को धारण करते है। इसीलिए मान्यता है जो कोई भक्त वाराणसी काशी विश्वनाथ के लिए दर्शन के लिए आते है, तो उन्हे सर्वप्रथम काल भैरव को वाराणसी शहर में प्रवेश करने की अनुमति देने के लिए प्रणाम करना चाहिए, व काल भैरव के दर्शन अवस्य करना चाहिए।
क्यूकी कालभैरव माता सती के पिंड की रक्षा करते है उनकी अनुमति के बिना माता सती के पिंड को कोई छू नहीं सकता व इस शहर में प्रवेश नहीं ले सकता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर घाट | Kashi Vishwanath Mandir Ghat
काशी विश्वनाथ मंदिर घाटों के शहर के नाम से भी प्रसिद्ध है, तथा यहाँ कुल 84 घाट है। परंतु सभी घाटों में मणिकर्णिका घाट, दशासवमेघ घाट, अस्सी घाट व नमो घाट, ललिता घाट, अत्यंत प्रसिद्ध है, यह स्थल पर्यटन का केंद्र बन गया है।
इन पर्यटन स्थलों पर भारत के आलवा विदेशों से वर्ष में लाखों की संख्या में यहाँ दर्शन व घूमने के लिए आते है।
अस्सी घाट | Assi Ghat
वाराणसी का अस्सी घाट सभी घाटों में सबसे प्रसिद्ध घाट है, जो कि गंगा और अस्सी नदी के संगम पर है। यह घाट गंगा आरती के अत्यंत प्रसिद्ध है तथा कुछ वर्षों से पर्यटन का केंद्र बन भी बन गया है। शाम को गंगा आरती के समय हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते है।
- यह घाट दशाश्वमेघ घाट से मात्र 3 किलोमीटर है, तथा वाराणसी जंक्शन से मात्र 8 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।
- पौराणिक मान्यता है माँ दुर्गा ने जब शुंभ और निशुम्भ नामक राक्षस का वध किया था तो उन्होंने वध के पश्चात अपनी तलवार इसी अस्सी घाट पर फेक दी थी। इसीलिए इस घाट की और अधिक मान्यता बढ़ जाती है।
- इसके आलवा इस घाट पर ‘रामचरितमानस’ के रचनाकार ‘तुलसीदास’ ने इसी घाट पर इस रचना को पूर्ण किया था। इसी घाट पर की थी।
दशाश्वमेघ घाट | Dashashwamedh Ghat
वाराणसी का प्रसिद्ध दशासवमेघ घाट पूजा-पाठ व अनेक धार्मिक कार्यों के लिए प्रसिद्ध है, मान्यता है की इस स्थल का नाम इसलिए दशासवमेघ इसीलिए पडा है क्यू प्राचीन काल में यहाँ ब्रह्मा जी ने आकार 10 यज्ञ किया हुआ था।
इस घाट पर माँ गंगा की प्रत्येक दिन शाम को होने वाली आरती देश व विदेश से आए श्रद्धालु का मन मोह लेती है। प्रतिदिन शाम को होने वाली इस आरती में श्रद्धालु हजारों की संख्या में आते है।
ललिता घाट | Lalita Ghat
वाराणसी का ललिता घाट का निर्माण नेपाल के एक राजा राणा बहादुर ने 19 शताब्दी में कराया था। वाराणसी का यह घाट देवी दुर्गा का एक स्वरूप ललिता को समर्पित है।
इस मंदिर में प्रवेश शुल्क 20 रुपये है, तथा यहाँ दर्शन आप प्रातः काल 4:00 से रात्री के 9:00 तक कर सकते है।
मंदिर दिन भर खुला रहने से पर्यटकों के आवाजाही दिन भर देखने को मिलती है, क्यू की इसी घाट से गंगा नदी से विश्वनाथ मंदिर जाने का रास्ता है जिसके कारण इस घाट पर सभी श्रद्धालुओ का दिन भर आना जाना लगा रहता है।
नमो घाट | Namo Ghat
वाराणसी का नमो घाट एक भारत का सबसे बडा घाट है, तथा आप यहाँ किसी वाहन या कार से आसानी से जा सकते है। इस घाट को 2 घाटों के बीच अर्थात अर्थात राजघाट और आदि केशव के बीच में बनाया गया है।
मणिकर्णिका घाट | Manikarnika Ghat
- वाराणसी का मणिकर्णिका घाट एक श्मशान घाट है, जहां 24 घंटे दाह संस्कार किया जाता है। यह घाट पूरे दुनिया का ऐसा घाट है जहा पर 24 घंटे दाह संस्कार किया जाता है।
- यह घाट दशाश्वमेघ घाट से मात्र 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और वाराणसी जंक्शन से 8 किलोमीटर दूर स्थित है।
- इसी घाट पर शिव दुर्गा मंदिर भी है, जिसका निर्माण 1850 में अवध के राजा ने करवाया था।
- मान्यता है इस घाट पर अंतिम संस्कार करने से मृत व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- इस स्थल पर पर्यटन के लिए आए सभी व्यक्ति घाट को देखने के लिए प्रतिदिन हजारों की संख्या में जाते है।