दशा माता, माँ पार्वती का एक स्वरूप हैं। इनकी पूजा से घर में सुख-शांति और धन-धान्य की वृद्धि होती है। लोग चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को दशा माता की आराधना करते हैं।
कथा | Katha
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक राजा नल अपनी रानी दमयन्ती और अपने 2 पुत्रों के साथ अपने राज्य में सुखपूर्वक राज्य करते थे। एक बार एक बूढ़ी महिला ब्राह्मणी राजमहल में आई, और रानी दमयन्ती से कच्चे सूत का डोरा खरीदने का आग्रह किया।
तभी रानी की दासी ने कहा, महारानी आज दशा माता के व्रत एवं पूजा का दिन है। आज के दिन सभी सुहागिन औरते दशा माता की पूजा पीपल वृक्ष के नीचे करके, इस धागे को धारण करती है।
यह सुन रानी दमयन्ती ने कच्चे सूत को ले लिया, और विधि – विधान पूर्वक दशा माता की पूजा की। एक दिन राजा नल और रानी दमयन्ती बात कर रहे थे, तभी राजा की नजर दमयन्ती के गले में पड़ी डोरे पर पड़ी।
उन्होंने रानी से कहा आप के पास इतने जेवर है, तब भी आपने एक सामान्य से दिखने वाले धागे को पहन रखा है। रानी राजा को जवाब देती, उसके पहले ही राजा ने उसके गले से धागा जमीन पर फेक दिया।
यह देख रानी ने राजा से बोला यह दशा माता के पूजा का धागा है, इसे तोड़ने से हमसे दशा माता नाराज हो जाएगी।
उसी रात्रि को राजा नल को रात्रि में स्वप्न में एक बूढ़ी औरत और उसने बोली “हे राजा नल तूने मेरा धागा फेक के मेरा अपमान किया है, अब तेरा नाश होगा और तेरा सब धन धान्य नष्ट हो जाएगा”।
इतना कहकर बूढ़ी महिला (दशा माता) गायब हो गई। समय बीतता रहा और एक वह समय या ही गया जब राजा का सब धन धान्य, हाथी घोड़े नष्ट हो गए और राजा रानी 2 वक्त की रोटी पाने के लिए जूझ रहे थे।
एक दिन राजा ने रानी से कहा रानी तुम दोनों बच्चों को लेकर अपने मायके चली जाओ, वहा तुम सुखपूर्वक रह सकोगी। राजा की बात सुनकर रानी ने कहा, मै आपकी पत्नी हु आप जिस हालत में रहेंगे मै भी रहूँगी, चाहे वह सुख हो या दुख।
यह सुन राजा ने यह निर्णय लिया की वो अपने बच्चों को लेकर अपना देश छोड़कर चले जाएंगे, और जहां भी काम मिलेगा वह कर के अपना जीवन यापन करेंगे।
रानी ने राजा की बात माँ लिया और दोनों ने अपने पुत्र को लेकर अपना देश छोड़ दिया। चलते चलते रास्ते में राजा भील का राज्य पड़ा, वहाँ उन्होंने राजा भील से अपने दोनों पुत्रों को कुछ समय तक अमानत के तौर पर रखने की सहायता मांगी।
राजा भील नल दमयन्ती की बात मान गए, और उनके दोनों पुत्रों को अपने यहाँ महल में रख लिया। अब नल और दमयन्ती फिर से काम की खोज में निकल पड़े रास्ते में राजा नल के मित्र का घर पड़ा।
तब राजा नल ने दमयन्ती से आग्रह किया की, चलो आज की रात्रि मेरे मित्र के यहाँ ठहरते और विश्राम करते है। नल और दमयन्ती को देखकर उनका मित्र बहुत प्रसन्न हुआ, और उसने अपने मित्र के ठहरने की व्यवस्था की।
रात्रि में जब नल और दमयन्ती ने भोजन ग्रहण करके सोने गए, तो अचानक उन्होंने देखा की मित्र की पत्नी का खूंटी पर हार टंगा था, जो उनके देखते ही देखते बेजान खूंटी हीरो का हार निगल रही थी।
यह सोच की उनका मित्र क्या सोचेगा, हीरो के हार के बारे में जब उसे सुबह नहीं दिखेगा तो। यह सोच राजा रानी ने निर्णय लिया की वो रात्रि को ही निकल जाएंगे, मित्र के घर से बिना बताए।
अब नल और दमयन्ती रात्रि को अपने मित्र के घर से निकल पड़े। सुबह होते ही राजा के मित्र और उसकी पत्नी ने देखा, की हार वहाँ नहीं तो वह अचंभित हो गए। राजा नल के मित्र की पत्नी ने नल और दमयन्ती को बुरा भला बोलने लगी, और चोरी का इल्जाम लगा रही थी।
लेकिन नल के मित्र को नल पर पूर्ण भरोसा था, उसने बोला की धैर्य रखो हार मिल जाएगा। और मेरा मित्र चोर नहीं हो सकता है, उसे चोर मत बोलो।
आगे जाने पर राजा नल के बहन का घर पड़ रहा था। राजा ने अपनी बहन के घर संदेश भेजवाया की तुम्हरे भाई – भाभी आये है, उनसे मिलने आओ। बहन ने संदेश देने वाले व्यक्ति से भाई भाभी के हाल चाल पूछा, और कैसे आये है, ये भी पूछा।
संदेश देने वाले व्यक्ति ने बता दिया पैदल आये है, और उनकी हालत काफी खराब है। यह सन बहन मिलने तो आई, और अपने भाई भाभी के लिए कांदा और रोटी ले आई।
राजा नल ने बहन द्वारा दिए कांदा और रोटी को ग्रहण कर लिया, लेकिन दमयन्ती ने अपना कांदा रोटी जमीन में गड्ढा कर के रख दिया। बहन से मिलकर अब नल और दमयन्ती आगे बढ़े।
चलते चलते रास्ते में एक नदी पड़ी। राजा ने नदी से मछली पकड़ी और रानी से बोला आप इसे भुजिए मै गाव से परोसने के लिए पात्र लेकर आता हु। राजा गाव में गया, और वहाँ देखा गाव का सेठ सभी को भोजन कर रहा था।
राजा ने सेठ के यहाँ से भोजन लिया, और वहाँ से चल पड़ा। रास्ते में आ ही रहा था, की एक चील ने झपट्टा मार के सारा भोजन गिरा दिया। यह देख राजा ने सोचा की अब रानी क्या सोचेगी की मै पात्र लेकर आया हु, भोजन अकेले ही ग्रहण कर गया।
इधर रानी दमयन्ती ने मछली को भुजने गई तो मछली जिंदा थी और वह फिसल कर पानी में पुनः चली गई, और रानी सोचने लगी की राजा क्या सोचेंगे की सारा भोजन खुद ही ग्रहण कर गई।
यही सोच रही थी की तभी राजा आ गए। रानी कुछ राजा से बोलती राजा देख कर समझ गए। राजा रानी अब पुनः काम की तलाश में निकल पड़े। चलते – चलते रास्ते में रानी दमयन्ती का मायका पड़ा।
तब राजा ने रानी से बोला रानी तुम अपने मायके चली जाओ और राजमहल में किसी दासी का काम कर लेना, और मै भी यही आस पास कोई काम देख लूँगा। रानी ने राजा की बात मान लिया और वह राजमहल में दासी का काम करने लगी।
तथा राजा ने पास ही एक किराने की दुकान तेली का काम कर लिया। समय बीतता गया और कुछ दिन बाद होली दशा का दिन आया। इस दिन सभी रानियों ने व्रत रखने के लिए स्नान किया और तैयार होने मे दासी ने मदद किया। यह व्रत दासी दमयन्ती ने भी रखा था।
व्रत करने के लिए दमयन्ती तैयार होने लगी। तभी राजमाता ने कहा तुम भी व्रत हो आओ मै तुमहरी सह्यता कर दु तुम्हरे बाल बांध दु। यह कह कर राजमाता दासी के बाल बांधने लगी तभी उन्होंने दासी के सिर में चिन्ह देखा और रोने लगी।
उन्हे रोता देखकर दासी ने पूछा की आप क्यू रो रही है? तब राजमाता ने जवाब दिया जैसे तुम्हारे sir में चिन्ह है वैसे ही मेरी पुत्री दमयन्ती के सिर में भी था, पता नहीं कहाँ है कैसे है उसकी हाल खबर नहीं मिल पा रही है।
तब दासी ने जवाब दिया मै ही आपकी पुत्री दमयन्ती हु, मुझे पर दशा माता नाराज है इसीलिए यह सब सहना पद रहा है। आज दशा माता का व्रत और पूजा करूंगी तो माता माफ कर देगी और सब ठीक हो जाएगा।
तब राजमाता ने पूछा तुम्हरे पति कहा है, और कैसे है? रानी ने बोल यही इसी राज्य में एक टेली के रूप में काम कर रहे है। यह सुन राजमाता ने सैनिकों को आदेश दिया की दमयन्ती के पति को ढूंढा जाए और उन्हे सम्मान पूर्वक लाया जाए।
रानी दमयन्ती ने दशा माता की विधि विधान से पूजा और व्रत किया, और धागा पहन लिया। इधर सैनिकों ने राजा नल को ढूंढ कर सम्मानपूर्वक ले आये। राजा को देखरकर रानी अत्यंत प्रसन्न हो गई।
धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो गया और राजा ने अपने राज्य को वापस जाने के लिए अपने सास ससुर से बोला। राजा के सास ससुर ने पुत्री को ढेर सारे उपहार, जेवर, हाथी, घोडा आदि देकर विदा कर दिया।
राजा रानी चलते – चलते पुनः उसी जगह पर जा पहुंचे, जहां उनके साथ मछली और चील की घटना घटी थी। उस घटना को याद कर राजा रानी ने उस समय में हुई घटना को बताया की मछली जीवित थी पानी में चली गई थी, और चील ने झपट्टा मार के भोजन गिरा दिया था।
आगे बढ़ने पर राजा की बहन का घर पड़ा। राजा ने अपनी बहन के घर पुनः संदेश भिजवाया की भाई भाभी आये है आकर मिल ले। समाचार देने वाले व्यक्ति से राजा की बहन ने भाई भाभी का हाल चाल पूछा। व्यक्ति ने बोला की हाथी- घोड़े और बहुत सारे सैनिकों के साथ आये है।
यह सुन राजा की बहन ने सोने की थाल सजा कर के भाई भाभी से मिलने गई। राजा की बहन को देखकर रानी दमयन्ती ने उस समय के जमीन में गाड़े कांदा और रोटी ती दोनों जमी से सोने के बन के निकले, उन्होंने राजा की बहन को दे दिया।
अब वह अपने मित्र के यहाँ गए जहां खूंटी ने हार निगल लिया था। राजा को आता देखर मित्र ने फिर से सेवा सत्कार किया और रात्री में विश्राम को रुके। रात्री को जिस कमरे में नल दमयन्ती रुके थे यह वही कमरा था जो रात्रि को खूंटी ने हार निगल लिया था।
आधी रात्री मे नल दमयन्ती ने देखा की खूंटी हार उगल रही है तभी राजा ने अपने मित्र तथा उसकी पत्नी को बुलाकर दिखया की उस समय हमने नहीं लिया हार खूंटी ने निगल लिया था, तुम लोग क्या सोचोगे हमारे बारे में इसीलिए हम चले गए यहाँ से।
यह सब देख राजा के मित्र और उसकी पत्नी को अपनी गलती का एहसास हुआ। अब राजा रानी अपने मित्र से विदा लेकर राजा भील के यहाँ पहुचे और अपने पुत्र को मांग पर राजा भील ने देने से माना कर दिया।
परंतु राजा रानी ने हार नहीं मानी, और उन्होंने हाथ जोड़कर दशा माता से प्रार्थना की माता हमारे पुत्रों को हमे दिला दो। राजा रानी की सहायता करने गाव वाले आये और राज्य भील को उनके पुत्रों को वापस करना पड़ा।
अपने पुत्रों को लेकर राजा रानी अपने देश पहुचे। राजा रानी को देखकर सभी नगर के लोग खुश हुए और उन्होंने स्वागत किया। अब राजा रानी को दशा माता की कृपया से अपना राज पाठ पुनः मिल गया। और अब सुख – शांति से राज्य करने लगे।