महावीर जयंती जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है। इस पर्व पर सभी जैन समुदाय भगवान महावीर द्वारा दी गई शिक्षाओं का प्रसार करते हैं और सभी सजीव प्राणियों के प्रति प्रेम और करुणा का भाव रखने का उपदेश देते हैं।
- भगवान महावीर ने पंचशील सिद्धांत दिए है जिसको अनुकरण करने से कोई भी व्यक्ति सुख समृद्ध को पा सकता है और लोभ छोड़कर दुख-सुख, जीवन मृत्यु के मोह माया से निकलकर निर्वाण प्राप्त कर सकता है।
- महावीर द्वारा दी गई पंचशील सिद्धांत है – सत्य, अहिसा, अस्तेय, अपरिग्रह ब्रह्मचर्य।
- महावीर जयंती पर सभी जैन भिक्षु भगवान महावीर की प्रतिमा को रथ पर विराजमान कर उसको पूरे शहर की यात्रा कर महावीर की शिक्षाओ को देते है।
- भगवान महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व में हुआ था, तथा मृत्यु 443 ईसा पूर्व में हुआ था।
- महवीर के मृत्यु के बाद जैन धर्म विचार मतभेद की वजह से यह 2 संप्रदायों में बट गया – स्वेताम्बर, दिगम्बर
- स्वेताम्बर संप्रदाय के लोग स्वेत वस्त्र धारण करते थे, व दिगम्बर संप्रदाय के निर्वस्त्र रहते थे।
- जैन धर्म में सभी तीर्थंकरों का प्रतीक चिन्ह होते है इनमे से महवीर स्वामी का प्रतीक चिन्ह सिंह है जो की इनके प्रतिमा में पैरों के पास नीचे पाया जाता है।
- जैन धर्म में महवीर स्वामी के जन्म को महावीर जयंती के रूप में व निर्वाण को दीपावली के रूप में मनाया जाता है।
महावीर जयंती 2025 | Mahavir Jayanti 2025
वर्ष 2025 में महावीर जयंती 10 अप्रैल, दिन गुरुवार को पड़ेगी। इसकी तिथि की शुरुआत 9 अप्रैल 2025 की रात 10:55 पर होगी और समाप्ति 11 अप्रैल 2025 को दोपहर 1:00 बजे होगी।
महावीर जयंती क्यू मनाया जाता है? | Mahavir Jayanti Kyu Manate Hai?
भगवान महावीर जैन धर्म भगवान महावीर के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। भगवान महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व बिहार राज्य के लिछवि वंश में हुआ था। इनके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशला था। महवीर के बचपन का नाम वर्धमान था।
महावीर स्वामी के गुरु पार्श्वनाथ थे। महावीर स्वामी का विवाह यशोदा नाम की कन्या से हुआ था तथा इनकी पुत्री का नाम प्रियदर्शना तथा दामाद का नाम जमाली था। 28 वर्ष की आयु में महावीर के माता-पिता की मृत्यु हो गई।
इसके बाद ज्येष्ट भाई नंदीवर्धन की आज्ञा का पालन कर 2 वर्ष तक राज्य में ही रहे। 2 वर्ष पश्चात 30 वर्ष की आयु में उन्होंने नंदिवर्धन से आज्ञा ले श्रमनी से दीक्षा ले ज्ञान की खोंज में निकल पड़े।
अंत में उन्हे 12 वर्ष की कठोर तपस्या ऋजुपलिक नदी पर कैवल्य की प्राप्ति हुआ। कैवल्य की प्प्राप्ति के बाद महावीर स्वामी जन-जन को घूम-घूम कर अर्धमाघदी भाषा में उपदेश देने लगे। और उन्होंने 5 सिद्धांतों को सभी को अनुकरण करना चाहिए कहा।
इसके आलवा महावीर स्वामी ने श्रमण तथा श्रमणी, श्रावक और श्राविका संघ की स्थपना की। जीवन के अंत में महावीर स्वामी ने बिहार के पावापुरी में 527 ईसा पूर्व में 72 वर्ष की आयु में महापरिनिर्वाण हुआ। महापरिनिर्वाण दिवस को जैन संप्रदाय के लोगों द्वारा इसे दीपावली उत्सव के रूप में मनाया जाता है ।