फाल्गुन पूर्णिमा हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। इस शुभ दिन पर किए गए धार्मिक कार्य व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। फाल्गुन पूर्णिमा पवित्रता, भक्ति और आनंद का प्रतीक मानी जाती है। साथ ही, यह दिन होली जैसे उल्लासपूर्ण पर्व की शुरुआत का संकेत देता है
फाल्गुन पूर्णिमा का महत्व
फाल्गुन पूर्णिमा को कई पौराणिक और धार्मिक कथाओं से जोड़ा गया है। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु के अवतार नरसिंह ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए हिरण्यकशिपु की बहन होलिका का अंत किया था। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
इसके अलावा, फाल्गुन पूर्णिमा का संबंध महर्षि वेद व्यास द्वारा लिखे गए ग्रंथों से भी है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है।
फाल्गुन पूर्णिमा और होलिका दहन
फाल्गुन पूर्णिमा की रात को होलिका दहन किया जाता है। इस दिन लोग लकड़ियों और गोबर के उपलों से होलिका बनाते हैं और अग्नि प्रज्वलित कर उसकी पूजा करते हैं। यह परंपरा बुराई का अंत और नई ऊर्जा के स्वागत का प्रतीक है।
होलिका दहन की पूजा विधि
पूजन की विधि
- होलिका दहन स्थल पर लकड़ियां, गोबर के उपले, और पूजा सामग्री रखें।
- पूजा सामग्री में रोली, चावल, हल्दी, कुमकुम, फूल, नारियल, और मौसमी अनाज जैसे गेंहू की बालियां और चने रखें।
सबसे पहले होलिका के चारों ओर गंगाजल छिड़ककर उसे पवित्र करें। - दीपक जलाएं और धूप-अगरबत्ती लगाएं।
- होलिका और प्रह्लाद की प्रतिमा पर रोली, अक्षत और फूल अर्पित करें।
- गेंहू की बालियां और चने अग्नि में चढ़ाएं।
- भगवान विष्णु और प्रह्लाद की कथा का पाठ करें।
दान और भोग
- दहन के बाद घर पर भगवान विष्णु और प्रह्लाद के लिए विशेष भोग तैयार करें, जैसे हलवा, पंचमेवा, या मिठाई।
- ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को वस्त्र, अन्न, और धन का दान करें।
आरती और भजन
- पूजा के अंत में भगवान विष्णु और होलिका की आरती करें।
- भजन-कीर्तन के माध्यम से भगवान का गुणगान करें।
समापन
फाल्गुन पूर्णिमा भारतीय संस्कृति में न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह एकता, भाईचारे और प्रेम का संदेश भी देती है। इस दिन किए गए धार्मिक कार्य व्यक्ति के जीवन को सकारात्मक ऊर्जा से भर देते हैं और समाज में उत्साह का संचार करते हैं।