शरद पूर्णिमा के दिन श्री हरि विष्णु, माता लक्ष्मी और चंद्रमा की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से पूर्ण होता है और अपनी किरणों के माध्यम से अमृत बरसाता है। इसीलिए सभी व्यक्ति इस रात खीर बनाकर छत पर रखते हैं, जिससे चंद्रमा का प्रकाश या अमृत की बूंदें उसमें मिल जाएं।
शरद पूर्णिमा को अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे – कोजागरी पूर्णिमा, रास पूर्णिमा। इस दिन रात को सभी लोग खीर बनाकर छत पर रख देते हैं, जिससे चंद्रमा का प्रकाश उस खीर पर पड़े और वह अमृत के समान बन जाए।
इस तिथि के दिन रात को रखी खीर को अगले दिन प्रातःकाल स्नान आदि के बाद सेवन करते हैं। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से ईश्वर का आशीर्वाद बना रहता है, जिससे घर में सुख-समृद्धि और संतान सुख की प्राप्ति होती है।
इसके अलावा, शरद पूर्णिमा के दिन पति-पत्नी चंद्रमा की पूजा और उन्हें अर्घ्य देते हैं, तो उनका जीवन खुशियों से भर जाता है और रिश्ते में मिठास आती है। जिन जातकों की कुंडली में चंद्र दोष होता है, उन्हें इस दिन चंद्रमा की पूजा और उन्हें अर्घ्य अवश्य देना चाहिए, इसके साथ दूसरों को दान देना चाहिए।
इस दिन जातक को कभी भी मादक पदार्थों और तामसिक भोजन, काले रंग के कपड़े और किसी का अपमान नहीं करना चाहिए। शरद पूर्णिमा का यह त्योहार भारत के अनेक राज्यों में नई फसल आने के उत्साह में भी मनाया जाता है जैसे- गुजरात, महाराष्ट्र, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश।
शरद पूर्णिमा 2024 | Sharad Purnima 2024
वर्ष 2024 में शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर, बुधवार को पड़ेगी। इस दिन पूर्णिमा तिथि का आरंभ रात 8:41 बजे होगा और समाप्ति अगले दिन 17 अक्टूबर को शाम 4:56 बजे होगी।
शरद पूर्णिमा लक्ष्मी पूजा | Sharad Purnima Laxmi Puja
शरद पूर्णिमा पर माता लक्ष्मी और कुबेर जी की पूजा करने से कभी भी घर में धन-दौलत की कमी नहीं होती है। इस दिन शाम के समय स्नान कर माँ लक्ष्मी और कुबेर जी को गंगाजल से स्नान कराएं। इसके बाद उन्हें आसन पर विराजमान कर, उनका तिलक करें। इसके बाद घी का दीपक जलाएं। पुष्प अर्पित करें और मीठी खीर या दूध चढ़ाएं। माँ लक्ष्मी के स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। आखिर में माँ लक्ष्मी की आरती करें।
पढिए शरद पूर्णिमा की कथा | Sharad Purnima Katha
प्राचीन काल में एक साहूकार की दो पुत्रियाँ थीं। दोनों लड़कियाँ शरद पूर्णिमा का व्रत करती थीं। बड़ी लड़की हमेशा शरद पूर्णिमा व्रत पूर्ण करती थी, लेकिन छोटी लड़की व्रत हमेशा अधूरा छोड़ देती थी।
जब दोनों बहनों की शादी हुई तो शादी के बाद बड़ी बहन अपने परिवार और बच्चों के साथ सुखपूर्वक रहती थी। परंतु छोटी बहन के जितने भी बच्चे होते, जन्म के तुरंत बाद ही उनकी मृत्यु हो जाती थी।
इस कारण छोटी बहन हमेशा दुखी रहती थी। अपने बच्चों की मृत्यु का कारण पूछने के लिए साहूकार की पुत्री ने एक बार एक पंडित को बुलवाया और उनसे पूछा ‘मेरे नवजात बच्चों की मृत्यु का कारण क्या है’।
पंडित ने कहा कि ‘तुम शरद पूर्णिमा का व्रत पूर्ण रूप से पालन करो और माता लक्ष्मी व चंद्रमा की पूजा करो, इससे ईश्वर तुमसे प्रसन्न होंगे और तुम्हारे ऊपर से नकारात्मक ऊर्जा का बुरा प्रभाव खत्म हो जाएगा’।
छोटी बहन ने ऐसा ही किया, वह शरद पूर्णिमा का व्रत और पूजा विधि विधानपूर्वक सम्पन्न करने लगी और अपना मन ईश्वर की भक्ति में अधिक लगाने लगी। कुछ समय बाद साहूकार की छोटी पुत्री को पुनः एक बच्चा हुआ, परंतु उस नवजात बालक की मृत्यु तुरंत ही हो गई।
बच्चे के जन्म के बारे में उसकी मासी को पता चला तो वह अपनी छोटी बहन से मिलने आई, परंतु उसे यह नहीं पता था कि बच्चा मर गया था। बड़ी बहन को आते देख, छोटी बहन ने उसे बैठने के लिए एक पट्टा दिया।
पट्टा पर बैठते समय बहन के कपड़े छोटी बहन के मृत बच्चे पर पड़े और बच्चा जीवित होकर रोने लगा। बच्चे की आवाज सुनकर बड़ी बहन ने अपनी छोटी बहन से कहा ‘क्या तुम अपने बच्चे को मारने का इल्जाम मुझ पर लगाना चाहती थी, जो मेरे पीछे रख दिया’।
यह सुन छोटी बहन ने कहा – नहीं दीदी, आपके पूर्णिमा व्रत के प्रभाव से मेरा मृत बच्चा जीवित हो गया है। यह सुन बड़ी बहन को गलती का एहसास हुआ और वह ईश्वर का धन्यवाद करने लगी। तत्पश्चात पूरे गाँव और आस-पास के सभी जगहों पर पूर्णिमा व्रत का गुणगान और उसके प्रभाव के बारे में सभी लोगों को बताया।
शरद पूर्णिमा खीर | Sharad Purnima Kheer
शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की पूजा और रात को खीर बनाकर छत पर रखते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा रात को अपने प्रकाश की किरणों के साथ अमृत बरसाता है। इसीलिए सभी जातक छत पर रात को खीर रख देते हैं और अगले दिन प्रातःकाल स्नान आदि कर विधि विधान से पूजा करके इस खीर को खाते हैं।