सरयू नदी, भारतीय सभ्यता की एक महत्वपूर्ण नदी है। इसका जिक्र सुनते ही हमारे मन में रामायण और पौराणिक कथाओं की छवियाँ उत्पन्न होती हैं। आईए जानते हैं, सरयू नदी के कुछ जरूरी तथ्य ।
- माँ सरयू नदी का स्रोत हिमालय के गौमुख स्थल से सुरू होता है और यह दक्षिण में बहकर गंगा नदी में मिलती है।
- सरयू नदी की उत्पत्ति भगवान विष्णु के नेत्रो से निकले अश्रु सेहुई थी ।
- माँ सरयू का जल इस कारण से अधिक पवित्र माना जाता हैं।
- रामायण काल मे भगवान राम अपना कर्तव्य निभा कर सरयू नदी मे समाधि लिथी।
- इस कारण से सरयू नदी का जल किसी भी धार्मिक क्रिया, पूजा, पाठ इत्यादि मे इस्तमल नहीं होता ।
- श्री राम के कहे अनुसार जो व्यक्ति सूर्योदय से पहले सरयू नदी मे स्नान करता उसको सारे तीर्थ के दर्शन करने के समान पुण्य मिलेगा।
- भगवान शिव ने सरयू नदी को श्राप भी दिया था।
- सरयू नदी का सबसे महत्वपूर्ण इतिहास श्रीराम के साथ जुड़ा है।
- सरयू नदी को धरती पर ब्रह्मर्षि वशिष्ठ लाए थे ।
- इसका पानी भूमि संरक्षण और वन्यजीव संरक्षण के लिए भी महत्वपूर्ण है।
“सरयू नदी की कहानी” (Saryu Nadi Ki Kahani In Hindi)
सरयू नदी की कहानी आदिकाल से शुरू होती है, इनकी उत्पत्ति एक रहस्यमय घटना से हुई थी। वेदपुरुष भगवान विष्णु के नेत्रों के द्वारा यह नदी प्रकट हुई थी। प्राचीन काल में, शंखासुर नामक दैत्य ने वेदों को चुराकर समुद्र की गहराई में डाल दिया और स्वयं भी समुद्र में छिप गया। इसके बाद, भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण करके इस दैत्य के प्राण लिए ।
इस क्रिया के बाद, भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी को वेद सौंपकर अपना असली रूप धारण किया। इस दौरान, भगवान विष्णु की आंखों से प्रेम के आंसू निकलने लगे, जिन्हें ब्रह्माजी ने प्रेमाश्रु कहकर मानसरोवर में डाला और उसे सुरक्षित रखा। महापराक्रमी वैवस्वत महाराज ने इस पवित्र जल को बाण के प्रहार से मानसरोवर से बाहर निकालकर। इसे सरयू नदी का नाम दिया।
भगवान शिव का श्राप: भगवान राम ने अपनी लीला का समापन करते हुए सरयू नदी में जल समाधि ली थीं। उस समय, भगवान भोलेनाथ ने सरयू माँ पर अपना क्रोध प्रकट किया, जिसका कारण उन्होंने सरयू माता को श्राप दिया। उनका श्राप था कि इसका जल मंदिर में चढ़ाया नहीं जाएगा और न किसी पूजा पाठ में इसका उपयोग होगा।
इसके बाद, सरयू माता ने भगवान भोलेनाथ से क्षमा मागी और कहा कि इसमें मेरा दोष क्या है, यह तो विधि का विधान है, मैं इसमें कुछ नहीं कर सकती। माता सरयू ने भगवान से बहुत विनती की।
इस पर, भगवान भोलेनाथ ने कहा कि वह अपना श्राप वापस नहीं ले सकते, लेकिन तुम्हारे जल से स्नान करने से लोगों के पाप धूल जाएंगे। परंतु, तुम्हारे जल का पूजा पाठ में उपयोग नहीं किया जाएगा।
सरयू का पौराणिक इतिहास।
सरयू नदी का इतिहास भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक इतिहास में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। सरयू नदी का सबसे पहला उल्लेख पुराणों में है, जहां इसे एक पवित्र नदी माना गया है। पुराणों के अनुसार, सरयू नदी का स्रोत ब्रह्मलोक से होता है।
यह हिमालय की ऊँचाइयों से निकलकर दक्षिण की ओर बहता है, जहां यह गंगा नदी से मिलती है। इस नदी को पुण्य स्नान कहा जाता है, जिससे नदी को पवित्रता और शुद्धता की नजर से देखा जाता है।
यह नदी न केवल पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है, बल्कि आज भी भक्तों के लिए एक पवित्र स्थल है जो धार्मिकता, संस्कृति, और प्राकृतिक खूबसूरती का एक संगम है।
वह जाने वाले श्रद्धालु और आयोध्या के लोग नदी के पावन जल में नहाकर अपने पूर्वजों के साथ धार्मिक अनुष्ठान और माँ सरयू की आरती करते हैं ।
सरयू नदी की लंबाई।
सरयू नदी हिमालय से निकलती है और उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्य से बहती है। सरयू नदी की लंबाई 1,384 किलोमीटर है और इसकी स्रोत ऊंचाई 415 मीटर है।
ऋग्वेद में सरयू नदी का जिक्र।
वैसे तो जादातार लोग इसको सरयू नदी के नाम से जानते हैं लेकिन कुछ जगहों परइनको घाघरा के नाम से भी जाना जाती है। भगवान श्री राम के जन्मस्थान अयोध्या से होकर बहने से हिंदू धर्म में इस नदी का विशेष महत्व है। सरयू नदी का वर्णन ऋग्वेद में भी मिलता है।
सरयू नदी के बारे मे पूछे जाने वाले कुछ मुखिया प्रश्न।
सरयू नदी का स्रोत हिमालय के गौमुख स्थल से है और यह दक्षिण में बहकर गंगा नदी में मिलती है।
सरयू नदी की लंबाई लगभग 1,384 किलोमीटर है और इसका कुल प्रवाह क्षेत्र लगभग 60,400 वर्ग किलोमीटर है।
सरयू नदी के किनारे स्थित मुख्य नगरों में आयोध्या, सुलतानपुर, बहराइच, बराबंकी, और गोंडा स्थित हैं।
सरयू नदी को घाघरा और सरजू के नाम से भी जाना जाता हैं।
सरयू नदी कई नाम हैं जैसे : सरयू, घाघरा, मानस नंदिनी, शारदा, काली नदी इत्यादि।
सरयू माता, हिन्दू धर्म के पौराणिक ग्रंथों में एक महत्वपूर्ण नदी के रूप में प्रस्तुत हैं।
सरयू नदी: भगवान राम की लीलाएं, पौराणिक महत्व और सांस्कृतिक धरोहर से युक्त।
भगवान विष्णु की मानस पुत्री हैं