परिवर्तिनी एकादशी हिन्दू कैलंडर के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष में पड़ती है। इस एकादशी को जलझूलनी एकादशी या पद्मा एकादशी भी कहते है। इस एकादशी में भगवान विष्णु तथा माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
परिवर्तिनी एकादशी 2024
साल 2024 मे परिवर्तिनी एकादशी 14 सितंबर दिन शनिवार को है। एकादशी तिथि के आरंभ 13 सितंबर को रात 10:30 पर होगा, और समाप्ति 14 अगस्त रात 08:41 बजे तक होगी। तथा पारण का समय 15 सितंबर को 06:06 am से 08:34 am तक रहेगा।
धार्मिक महत्व
परिवर्तिनी एकादशी का धार्मिक महत्व अनेक मान्यताओ पर आधारित है, एक मान्यता यह है की इस दिन भगवान ने करवट लिया था, इस लिए इसे परिवर्तिनी एकादशी भी कहते है।
एक और मान्यता है की मैया यशोदा ने भगवान श्री कृष्ण के जन्म के बाद इसी दिन उनका घाट पूजन किया था, इसीलिए परिवर्तिनी एकादशी भी कहा जाता है।
परिवर्तिनी एकादशी कथा
पौराणिक कथा के अनुसार त्रेता युग में बलि नामक एक दैत्य था, जो भगवान विष्णु का भक्त था। बलि हमेशा यज्ञ तथा ब्रह्मणों की सेवा पुण्य कार्यों को करता था। एक बार बलि का देवराज इन्द्र से युद्ध हो गया, और वह सभी देवताओ को परास्त कर इंद्रलोक को जीत लिया।
यह देख सभी देवता परेशान थे, और वह सभी भगवान विष्णु के पास आकर सह्यता मांगी। तब भगवान ने अपना पाचवा अवतार बौने ब्रह्मचारी का धारण कर, उसके पास गए और बलि से 3 पग भूमि मांगी। ब्रह्मचारी की बात बलि टाल न सका, और वह तीन पग भूमि देने को वादा कर बोला, “3 पग भूमि ब्रह्मणन देव आप खुद ही नाप लो” यह कह दिया।
भूमि मिलते ही बौने ब्राह्मण देव के रूप में भगवान ने अपना विकराल रूप धारण किया, और 2 पग में ही पूरी पृथ्वी तथा स्वर्गलोक नाप लिया, तथा 3 पग भूमि नहीं पूर्ण हो पाई। फिर राजा बलि को बौने ब्रह्मचारी ने कहा “ हे राजन मैंने 2 कदम में पृथ्वी और स्वर्गलोक को नाप लिया है, और तीसरा कदम के लिए भूमि ही नहीं बची।
तब राजा बलि यह समझ गया, की ये कोई साधारण मनुष्य नहीं है। उसने ने बौने ब्रह्मचारी से नम्रतापूर्वक कहा, अब आप मेरे सिर पर रख लीजिए। इतना बोल उसने अपना सिर उनके सामने झुका लिया।
परंतु बलि की नम्रता भरे भाव को देखकर भगवान ने बलि से कहाँ “हे बलि मै तुम्हें पाताल लोक को भेट करता हूँ, और आशीर्वाद देता हूँ की मेरा एक स्वरूप चार मास के लिए शयन करेगा, तो एक स्वरूप हमेशा तुम्हारे राज्य की दुसरो की नजर से रक्षा किया जाता है।
इस प्रकार देवताओ को उनका इंद्रलोक वापस मिल गया, और बलि को अपनी भूल का एहसास भी हुआ।