नवकलेवर भगवान जगन्नाथ से संबंधित एक विशेष उत्सव है, जिसमें जगन्नाथ मंदिर में स्थापित भगवान जगन्नाथ, बलराम, सुभद्रा, और सुदर्शन की पुरानी मूर्तियों को बदलकर नई मूर्तियाँ स्थापित की जाती हैं। नवकलेवर का अर्थ है कि भगवान जगन्नाथ, बलराम, सुभद्रा, और सुदर्शन ने अपने पुराने शरीर को त्यागकर नया शरीर धारण किया है।
- मूर्ति निर्माण के लिए एक विशेष प्रकार की नीम की लकड़ी क इस्तेमाल किया जाता है, जिसको ‘दारू ब्रह्म, के नाम से जाना जाता है।
- मूर्ति बनाने के लिए भगवान जगनाथ के लिए 4 शाखाओ का, भगवान बलराम के लिए 9 शाखा और सुभद्रा के लिए 5 तथा सुदर्शन के लिए 3 शाखाओ का वृक्ष की खोज किया जाता है।
- नवकलेवर उत्सव को 12 चरणों में संपादित किया जाता है।
- नवकलेवर 2 प्रकार से किया जाता है- प्रथम प्रकार में मूर्तियों को कुछ परिवर्तन नहीं किया अगर अवश्यता होती है तो मूर्तियों की मरम्मत किया जाता है।
- नवकलेवर के दूसरे प्रकार में – मूर्ति निर्माण की जाती है व गुप्त अनुष्ठान कार्य आदि किए जाते है।
- इन सभी मूर्तियों का निर्माण सभी लकड़ियों को जगनाथ मंदिर के उत्तरी द्वार पर ले कोइली बैकुंठ ले जाया जाता है और वही मूर्ति निर्माण कार्य को गुप्त तरीके से किया जाता है।
- मूर्ति निर्माण के साथ यज्ञ और अनुष्ठान का आयोजन होता है।
- मूर्ति निर्माण के बाद कृष्ण पक्ष की 14 तिथि की रात्री को पुरानी मूर्तियों से प्राण निकालकर नयी मूर्तियों में प्राण डाल दिया जाता है।
- इसके बाद पुरानी मूर्तियों को कोइली बैकुंठ में ही दफनाया जाता है।
- इस प्रक्रिया को ‘पाटली’ कहा जाता है।
नवकलेवर उत्सव कब-कब होता हैं? | Nabakalebara kab hota Hain?
जब भी नववकलेवर उत्सव मनाया जाता हैं उसके 8 वर्ष, 12 वर्ष, और 19 वर्ष बाद आयोजित किया जाता है।
नवकलेवर पेड़ | Nabakalebara Ped
- नवकलेवर उत्सव में सभी मूर्तियों के निर्माण में साधारण नीम के पेड़ का प्रयोग नहीं किया जाता है।
- इन मूर्तियों के निर्माण के लिये विशेष नीम के पेड़ की खोज की जाती है।
- भगवान जगन्नाथ की मूर्ति निर्माण के लिए पेड़ की चार शाखा और छाल गहरे रंग की व उस पर संख व चक्र बना होना चाहिए, इसके पास में चीटीयो का झुंड व जड़ में सांप का बील भी होना चाहिए।
- सुदर्शन की दारू में तीन शाखाये होती है, इसके आलवा पेड़ में गढ़ा होता है।
- सुभद्रा जी के दारू के 5 शाखा होती है, पेड़ की छाल पीले रंग की होती है।
- बलराम जी के दारू में 7 शाखाये होती है, जिसमे हल और मूसल का चिन्ह होता है तथा इसमे पेड़ की छाल हल्के भूरे रंग की होती है।