मंगला गौरी व्रत सुहागिन महिलाएं और कुवारी कन्याये क्रमशः पति की दीर्घायु व अच्छा वर प्राप्ति के लिए करती है। यह व्रत सावन माह के प्रत्येक मंगलवार को किया जाता है, व इसमे माँ पार्वती का विधि विधान से पूजा व व्रत किया जाता है। इस व्रत को करने से माँ पार्वती मनोवांछित फल देती है।
- मंगला गौरी व्रत सावन माह के प्रत्येक मंगवार को किया जाता है।
- इस व्रत को माँ पार्वती को प्रसन्न करने और मनोवांछित फल प्राप्ति हेतु किया जाता है।
- किसी-किसी वर्ष सावन माह की अवधि बढ़ जाती है, और मंगला गौरी व्रत की भी।
- मंगला गौरी व्रत को करने के माता गौरी की प्रतिमा नदी में प्रवाहित कर दी जाती है।
- मंगला गौरी व्रत सुहागिन या कुवारी कन्याओ द्वारा 5 वर्षों तक किया जाता है।
- जिसे करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति व परिवार में सुख शांति आती है।
- मंगल दोष से प्रभावित जातक को मंगला गौरी व्रत अवश्य करना चाहिए, इससे कुछ हद तक रहता मिलती है।
पूजा सामग्री | Puja Samagri
भगवान शिव व माँ पार्वती की प्रतिमा, फल, लड्डू, सुहाग की सामग्री, घी, एक कलश, लाल रंग की चुनरी या वस्त्र, 7 प्रकार के अनाज, सुपारी, लौंग, इलायची।
व्रत विधि | Vrat Vidhi
- मंगवार के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करे।
- इसके बाद भगवान शिव व माता पार्वती की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराये।
- इसके बाद घी का दीपक जलाए।
- फिर भगवान शिव व माता पार्वती का तिलक करे।
- इसके बाद माँ पार्वती को लाल रंग की चुनरी या कोई भी वस्त्र अर्पित करे।
- फिर शृंगार का सामान पार्वती माँ को चढ़ाए।
- भगवान शिव व माँ पार्वती को भोग लगाए, व कलश में पानी अर्पित करे।
- इसके बाद मंगल गौरी कथा करे।
- अंत में माँ गौरी और भगवान शिव की आरती करे।
मंगला व्रत कथा | Mangala Gauri Vrat Katha
प्राचीन काल में एक धर्मदास नाम का धनवान व्यापारी अपनी पत्नी के साथ सुखपूर्वक रहता था। धर्मदास के पास सब कुछ था, परंतु उसके पास कोई औलाद नहीं थी इसीलिए वह बहुत ही दुखी रहता था।
धर्मदास दयालु प्रवित्ती का था, इसीलिए किसी की दुआ की वजह से उसे पुत्र तो हुआ पर उसकी आयु मात्र 16 वर्ष थी। बालक की आयु 16 वर्ष पूर्ण होते ही उसकी मृत्यु हो जाएगी। इस बात का पता धर्मदास को नहीं था।
बालक जब कुछ बडा हुआ तो उसके पिता उसके विवाह के लिए कन्या ढूढने लगे। धर्मदास का विवाह जिस कन्या से हो रहा था, वह बहुत ही भाग्यवान और गुणवान थी। क्योंकि जिस कन्या से धर्मदास के पुत्र का विवाह हो रहा था उसकी माता मंगला गौरी का व्रत करती थी, जिससे उसे आशीर्वाद मिला था की उसकी पुत्री का विवाह जिससे होगा, वह बहुत धन-धान्य से पूर्ण और दीर्घायु को प्राप्त करेगा।
धर्मदास के पुत्र और कन्या का विवाह हुआ, जिसकी वजह से उसकी मृत्यु टल गई, और वह 100 वर्ष की आयु को प्राप्त करता है। अब धर्मदास अपने सम्पूर्ण परिवार के साथ सुखपूर्वक जीवन यापन करने लगे।
जो भी भक्त मंगला गौरी का व्रत व पूजा करते है, उनकी सभी इच्छा, मनोकामना पूर्ण होती है, व परिवार में सुख शांति और समृद्धि आती है।
मंगला गौरी मंदिर वाराणसी | Mangala Gauri Mandir Varanasi
- मंगला गौरी मंदिर वाराणसी में पंचगंगा घाट पर स्थित है।
- माँ पार्वती का स्वरूप माँ मंगला गौरी को माना जाता है।
- इस मंदिर की यह विशेषता है की यहाँ पर विवाहित महिलाये अपने परिवार की समृद्धि और के लिए यहाँ पूजन कराती है।
- इसके आलवा परिवार में किसी भी प्रकार का रोग या कष्ट, गर्भधारण में समस्या, पति पत्नी की आपसे मतभेद से छुटकारा के लिए भी यहाँ माथा टेकने और पूजा को आते है।
- इस पवित्र तीर्थस्थल वाराणसी में लोग दूर दूर से दर्शन व पूजा के लिए आते है।
- वाराणसी पहुच कर यहाँ आने के लिए आप ऑटो, ई- रिक्शा, बस, या किसी भी घाट से नाव का सहारा ले सकते है।