कृष्ण जी की आरती हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पूजा विधि है, जिसे भगवान श्री कृष्ण की भक्ति और सम्मान में गाया जाता है। श्री कृष्ण, जो विष्णु के आठवें अवतार के रूप में पूजे जाते हैं, उनकी आरती विशेष रूप से भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को बहुत श्रद्धा और भक्तिभाव से की जाती है।
कृष्ण जी की आरती (1)
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झल काला, नंद के आनंद नंदलाला ।।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाड़े बनमाली, भ्रमर सी अलक,कस्तूरी तिलक।
चंद्र सी झलक,ललित छवि श्यामा प्यारी की।।
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
कनकमय मोर मुकुट दिल से , देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै, बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग।
ग्वालिन संग, अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
जहां ते प्रकट भई गंगा, सकल मन हारिणि श्री गंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा, बसी शिव शीष , जटा के बीच,
हरै अघ कीच, चरन छवि श्रीबनवारी की।
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
चमकती उज्ज्वल तट रेणु, बज रही वृंदावन बेणु ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद,
कटत भव फंद, टेर सुन दीन दुखारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
कृष्ण जी की आरती (2)
आरती कुंजबिहारी की, आरती कुंजबिहारी की।
गोपियाँ रहीं ललचाई, दीन दयाल की।
आरती कुंजबिहारी की।।
श्री कृष्ण गोपाल मुरारी, धरती पावन की।
जग में तू ही मस्तक, सबका दयाल की।
आरती कुंजबिहारी की।।
गोपियों के संग जोगी, गोपियाँ रहीं ललचाई।
मोहन के संग रास रचाया, भक्तों का दिल जीताया।
श्री कृष्ण गोपाल मुरारी, धरती पावन की।
आरती कुंजबिहारी की।।
जग में तू ही मस्तक, सबका दयाल की।
गोपियाँ रहीं ललचाई, दीन दयाल की।
आरती कुंजबिहारी की, आरती कुंजबिहारी की।
आरती का महत्व | Aarti ka Mahatva
आरती का अर्थ होता है ‘प्रकाश अर्पण’। यह पूजा का एक ऐसा भाग है जिसमें दीपक की रोशनी भगवान के सामने दिखाकर उनका स्वागत किया जाता है। यह प्रक्रिया न केवल भगवान को सम्मानित करने का माध्यम है, बल्कि यह भक्तों को आस्था और श्रद्धा के साथ जोड़ने का एक तरीका भी है। आरती के दौरान भगवान के सामने दीपक दिखाकर, भक्त उनके प्रति अपनी भक्ति और प्रेम प्रकट करते हैं।
आरती की विधि | Aarti Ki Vidhi
- आरती की तैयारी: आरती करने से पहले एक साफ स्थान पर भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति या चित्र रखें। दीपक, अगरबत्ती, फूल, और भगवान को अर्पित करने के लिए प्रसाद तैयार करें।
- आरती की प्रक्रिया: दीपक जलाएं और भगवान के सामने रखें। अब आरती गाते हुए दीपक को भगवान की मूर्ति के सामने घुमाएं। आरती के दौरान भक्त श्री कृष्ण की स्तुति करते हैं और अपनी भक्ति का प्रदर्शन करते हैं।
- प्रसाद अर्पण: आरती के बाद भगवान को अर्पित किया गया प्रसाद भक्तों में बांटें। यह प्रसाद भक्तों के लिए भगवान की कृपा का प्रतीक होता है।
आरती का फल | Aarti Ka labh
कृष्ण जी की आरती नियमित रूप से करने से भक्तों के जीवन में सुख-शांति, समृद्धि, और भगवान की कृपा बनी रहती है। यह पूजा मानसिक शांति और आत्मिक संतोष प्रदान करती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है।