गोवर्धन पूजा हर साल सम्पूर्ण भारत में दीपावली के दूसरे दिन मनाई जाती है इसमे भगवान श्री कृष्ण की तथा और गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है। इसके बाद गाय की पूजा कर उसे गुड और चना खिलाया जाता है।
- गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पर्व नाम से भी जाना जाता है।
- यह त्योहार ब्रज के साथ साथ भारत के अनेक क्षेत्र में मनाई जाती है।
- इस दिन सबसे पहले गोबर से गोवर्धन पर्वत का पिंड बनाया जाता है।
- इसके बाद गोबर्धन पर्वत तथा भगवान कृष्ण जी की पूजा की जाती है।
- पूजा के बाद अन्नकूट चावल और कढी का भोग लगाया जाता है।
- पर्वत तथा भगवान की पूजा के बाद गाय की पूजा होती है।
- उसे अन्न और नए रस्सी गले में डाली जाती है।
- गाय को स्नानं वगैरह कराकर उन्हे गुड चना आदि खिलाया जाता है।
गोवर्धन पूजा 2024 | Govardhan Puja 2024 Date
गोवर्धन पूजा 2024 में 2 नवंबर शनिवार के दिन मनाया जाएगा।
गोवर्धन पूजा की प्रतिपदा तिथि का आरंभ 1 नवंबर 2024 की शाम को 06:16 मिनट पर होगी, और समाप्ति 2 नवंबर 2024 को 08:21 मिनट पर होगी।
गोवर्धन पूजा क्यों मनाते है? | Govardhan Puja Kyon Manate Hain
एक बार देवराज इन्द्र को अपनी शक्तियों पर घमंड हो गया। इन्द्र के घमंड को तोड़ने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने एक लीला रची, और वह मैया यशोदा के पास गए। उस समय मैया यशोदा भोजन बना रही थी, इन्द्र देव की पूजा के लिए।
भगवान श्री कृष्ण ने मैया से बोला, आप क्या बना रही है? तब मैया यशोदा ने कहा लल्ला मै बारिश के देवता देवराज इन्द्र की पूजा के लिए भोजन बना रही हूँ। तब कृष्ण जी ने कहा ‘मैया देवराज की पूजा करने से क्या फायदा, वो तो हमे कुछ नहीं देते है।
पूजा करनी हो तो पूजा पर्वत और गाय की करो, क्यूकी गोवर्धन पर्वत हमारी गाय के लिए चारा देते है तथा गाय हमे दूध देती है। इसीलिए हमे उनकी पूजा करनी चाहिए। मैया यशोदा ने उन्हे समझाया नहीं लल्ला ऐसा नहीं कहते इन्द्र नाराज हो जाएंगे।
पर भगवान कृष्ण ने उनकी बात न मानी, और सभी गाव वालों तथा यशोदा मैया को पर्वत तथा गाय की पूजा करने के लिए मना लिए।
सभी लोगों ने पर्वत की पूजा की, और यह देख देवराज इन्द्र नाराज हो गए। नाराज इन्द्र ने बारिश शुरू कर दी। 1 हफ्ते लगातार बारिश होने के कारण पूरे गाव में पानी भर गया, और सभी लोग इधर उधर भागने लगे।
तब श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपने एक उंगली से उठा लिया, तथा सभी लोगों से बोला आप सभी इसके नीचे आ जाइए। भगवान श्री कृष्ण की यह बाल लीला देखकर इन्द्रदेव घबरा गए, और समझ गए की यह कोई सामान्य बालक नहीं है।
इन्द्र देव ब्राह्मा जी के पास गए और ब्राह्मा जी को बालक की बारे में बताया। ब्राह्मा जी ने इन्द्र से कहा “वह कोई सामान्य बालक नहीं है, वह साक्षात भगवान विष्णु है, जो जनकल्याण के पृथ्वी पर जन्म लिए है”।
यह सुन इन्द्र को अपनी गलती का एहसास हुआ, और उसने भगवान श्री कृष्ण अपनी भूल की क्षमा मांगी। तब श्री कृष्ण ने बताया की कभी भी अपने शक्तियों को दुरपयोग नहीं करना चाहिए।