एक बार महाराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा ‘’हे प्रभ पौष माह के कृष्ण पक्ष में कौन सी एकादशी आती है और इस व्रत के पालन की विधि क्या है’ तथा इसमे किसकी पूजा की जाती है तब भगवान ने उत्तर दिया की युधिष्ठिर मै उतना दान पुण्य से खुश नहीं होता जितना की एकादशी के व्रत करने वाले से होता हु।
पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहते है। इस दिन भगवान विष्णु के दामोदर स्वरूप की पूजा करनी चाहिए तथा मौसम के अनुसार फल फूल तथा धूप दीपक अर्पण करे अब मै तुम्हें सफला एकादशी की एक कथा सुनाता हु जिसे तुम ध्यानपूर्वक सुनना।
चंपावती नामक एक सुंदर नगरी में महिसमत नाम का एक बहुत ही बलशाली और धर्मनिष्ठ राजा रहता था। जिसके चार पुत्र थे, जिसमे से उसका बडा पुत्र लूमपक हमेशा हर तरह के पाप कार्यों को करता था। जैसे जुआ खेलना, महिलाओ के साथ व्यभिचार। मदिरा का सेवन इत्यादि। इन्ही कारणों से परेशान होकर उसके पिता महिसमत ने लूमपक को अपने राज्य से बाहर निकाल दिया।
राज्य से निकाले जाने के कारण लूमपक राज्य से बाहर एक घनघोर जंगल में चला गया, लेकिन अभी भी उसके पापी स्वभाव और मनोवृति में कोई परिवर्तन नहीं आया। और वह अपने पिता से नाराज होकर उनके ही राज्य में लूट करने का सोचा। उसने सोचा की मै दिन के समय जंगल में रहूँगा ओर रात में राज्य में चोरी, लूट पाट करूंगा। उसने ऐसा किया भी, दिन में पशुओ की हत्या कर के अपना पेट भरता ओर रात्री में जाकर चोरी करता था।
कुछ लोगों ने चोरी करते समय लूमपक को देखा भी एवं पकड़ा भी, लेकिन राज के भय से कोई इस बात को राजा तक पहुचा नहीं पा रहा था। राज्य के लोग ये सोचते है की ये लूमपक के पूर्व जन्म के कर्म ही होंगे जिसकी वजह से ऐसे पापमयी मनोवृति है।
इसी कारण उसे अपने राजसी ठाट- बाट का भी त्याग करना पड़ रहा है। लेकिन लूमपक के पाप कार्यों का अंत नहीं हुआ। जंगल में वह रोज भगवान विष्णु के अतिप्राचीन बरगद के पेड़ के नीचे आता था।
और एक दिन उसके जीवन में चमत्कार हुआ वह दिन था सफला एकादशी। एकादशी के एक दिन पहले यानि की दशमी को लूमपक ठंड के कारण पूरी रात सो नहीं पाया, क्यू की उसके पास सोने ओर पहनने के लिए पर्याप्त वस्त्र नहीं था। पौष माह में पड़ने वाली शीत लहरों के कारण उसका शरीर कमजोर पड़ने लगा और अनजाने में उसने दशमी को जागरण कर लिया था।
दूसरे दिन प्रातःकाल हुआ तो उसके शरीर में इतनी ताकत नहीं थी की वह अपने लिए भोजन का प्रबंध कर सके। भूख ओर प्यास ने उसके शरीर को कमजोर ओर लाचार बना दिया था।
वह पहली बार अपनी इस अवस्था पर असहाय महसूस कर रहा था। किसी तरह उसने हिम्मत जुटाई और बरगद के पेड़ के आस पास पड़े हुए फल को एकत्रित करने लगा ओर अपनी दशा को देखते हुए भगवान विष्णु से प्रार्थना करने लगा की हे प्रभु मेरी इस हालत पर दया करे ओर मेरे चढ़ाए हुए फल को स्वीकार करे।
उस रात भी वह ठंड के कारण सो नहीं पाया। लेकिन लूमपक द्वारा चढ़ाए गए फल ओर प्रार्थना से भगवान विष्णु अतिप्रशंन हो गए,क्यू की लूमपक अनजाने में ही लेकिन सफला एकादशी का व्रत किया था,और रात में जागा था।
दूसरे दिन प्रातः काल सूर्यदेव के निकलने के बाद एक सफेद घोडा लूमपक को ढूढता हुआ आया।और तभी आकाश से एक आवाज आई ‘हे लूमपक ये घोडा तुम्हरे लिए है तुमने सफला एकादशी की व्रत का विधि पूर्वक पालन किया है जिसकी वजह से तुम्हरे सारे पाप कर्मों का नाश हो गया है अब तुम इस घोड़े पर बैठ कर अपने माता पिता से मिलने जा सकते हो’ यह सुनकर लूमपक अत्यंत प्रशंन हुआ।
और अपने राज्य में वापस चला गया। लूमपक के आचरण में परिवर्तन देख कर राजा बहुत खुश हुए ओर कुछ दिनों बाद ही राजा महिशमत ने लूमपक को राजा घोषित कर दिया और स्वयं जीवन की परमगति को प्राप्त किया और उन्हे बैकुंठ लोक की प्राप्ति हुई ।
श्री हरि विष्णु के मंत्र
- ॐ नमो भगवाते वासुदेवाए नमः।
- ॐ नारायणाय नमः।
- श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी। हे नाथ नारायण वसुदेवाया।।
- ॐ विषण्णवे नमः।
- ॐ अं प्रदयुमनाय नमः।
पढिए: एकादशी व्रत की सम्पूर्ण जानकारी
एकादशी कथा के लाभ
जो भी व्यक्ति एकादशी के व्रत को विधि पूर्वक करता है और कथा सुनता है तो उन्हे सात दीपों के दान का फल मिलता है।
- कार्तिक माह में जो भी व्यक्ति तुलसी द्वारा भगवान की पूजा करता है उसके10,000 जन्म के पाप का नाश होता है।
- कथा सुनने और कथा करने वाले व्यक्ति को उत्तम लोक की प्राप्ति होती है।
- घर में कथा करने से सुख समृद्धि बनी रहती है।
- एकादशी व्रत एवम कथा करने से व्यक्ति विद्वान , पुत्रवान तथा धनवान बनता है।
- इसके सुनने मात्र से जन्म जन्मांतर के कष्ट का नाश होता है तथा आध्यात्मिक विकास होता है।