बाँके बिहारी मंदिर उत्तर प्रदेश के मथुरा के वृंदावन में स्थित है, जहाँ भगवान श्री कृष्ण और राधा की एकीकृत स्वरूप की पूजा होती है। इस मंदिर में भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा की जाती है।
इसी कारण बाँके बिहारी जी की प्रतिदिन मंगला आरती नहीं की जाती है, क्योंकि आरती और घंटियों के शोर से उन्हें कष्ट हो सकता है। बाँके बिहारी जी की मंगला आरती केवल वर्ष में एक बार जन्माष्टमी पर की जाती है।
मंदिर में घंटियों की व्यवस्था नहीं की गई है ताकि बाँके बिहारी जी को शोर से कष्ट न हो। इसके अलावा, साल में सिर्फ एक बार भगवान बाँके बिहारी के चरणों के दर्शन कराए जाते हैं। बाँके बिहारी जी केवल एक बार बाँसुरी और मुकुट धारण करते हैं।
मंदिर में बाँके बिहारी की प्रतिमा के सामने लगे परदे को हर 2 से 3 मिनट पर हटा दिया जाता है, क्योंकि मान्यता है कि उन्हें लगातार देखने से वे भक्तों के साथ चले जाएंगे। यह मंदिर श्री बाँके बिहारी जी की पत्थर से बनी काली प्रतिमा के कारण अत्यंत प्रसिद्ध है।
श्री बाँके बिहारी जी की प्रतिमा अत्यंत प्राचीन मानी जाती है, जिसे संत हरीदास को भगवान कृष्ण के स्वप्न दर्शन के बाद जमीन के अंदर से मिली थी। इस मंदिर का निर्माण 1860 में हुआ था, परंतु पुनर्निर्माण 1921 में कराया गया था। मंदिर का पुनर्निर्माण संत हरीदास के अनुयायियों द्वारा कराया गया था।
मंदिर दर्शन के समय | Banke Bihari Timing
बाँके बिहारी में प्रतिदिन मंदिर सुबह 8:30 बजे भक्तो के लिए खुल जाता है, और दोपहर 1:00 तक खुला रहता है, इसके आलवा शाम के समय पुनः मंदिर 4:30 बजे मंदिर खुलता है, और रात्रि 8:30 तक भक्तो के लिए खुला रहता है।
मंदिर का इतिहास | Banke Bihari History
बाँके बिहारी जी की प्रतिमा को सर्वप्रथम संत हरीदास को मिली थी। स्वामी हरिदास भगवान भजन करते थे तथा कृष्ण के भक्त थे। एक बार उन्होंने भगवान कृष्ण को अपने भजन और और भक्ति से प्रसन्न किया, और राधा कृष्ण की जोड़ी उन्हे दर्शन दी।
इसके साथ ही भगवान ने हरीदास से कहा की अब मै यही तुम्हारे साथ यही रहूँगा। यह सुन हरीदास ने कहा ‘प्रभु आप इस सुंदरता को देखने का सामर्थ्य सामान्य मनुष्य का नहीं है। प्रभु आपको मै आपको तो रख लूँगा मगर माता के लिए सारी सुख सुविधा कहाँ से ले आऊँगा।
परंतु प्रभु मै चाहता हूँ की आपका आशीर्वाद मेरे साथ- साथ पृथ्वी के सभी मनुष्यों को मिले। यह सुन भगवान कृष्ण ने कहा ठीक है, हरीदास मै जल्द ही आऊँगा। इतना कहकर बाँके बिहारी अंतर्ध्यान हो गए।
अगले ही दिन रात्रि को जब संत हरीदास विश्राम कर रहे थे, तो उन्हे एक स्वप्न में आए और बोले ‘हरीदास तुम्हें मेरी प्रतिमा वन में मिलेगी जाओ इसे निकलो, और स्थापित करो। स्वप्न से उथपने के बाद हरीदास जी जंगल की तरफ निकल पड़े और स्वप्न में देखि हुई स्थान पर गए।
जाकर उन्होंने जमीन के अंदर से भगवान बाँके बिहारी जी की प्रतिमा मिली, जो की बाँके बिहारी के बाल स्वरूप की प्रतिमा थी। बाँके बिहारी जी की मंदिर 1860 में सर्वप्रथम बना, तथा बाद में इस मंदिर की का पुननिर्माण कार्य हरीदास जी के अनुयायी द्वारा 1921 में हुआ।