ज्वाला देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के कागड़ा जिले मे स्थित माता सती के 51 शक्तिपीठ में से एक है, मान्यता है की इस स्थल पर माता सती की जिह्वा गिरी थी, जिसे श्री हरि विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से काट दिया था।
- इस मंदिर में नौ ज्वाला बिना किसी तेल या घी के जलती है।
- नौ ज्वालाओ में माता ज्वाला प्रमुख देवी माँ है, इसके आलवा 8 अन्य माता में देवी विधहीवासिनी, माँ अंजी, माँ चंडी, माँ अन्नपूर्णा, देवी सरस्वती, देवी अंबिका, हिंगलाज है।
- माँ ज्वाला के दर्शन व आशीर्वाद लेने यहाँ प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते है।
- ज्वाला देवी मंदिर जाने के लिए आप सड़क मार्ग, रेल मार्ग या स्वयं के वाहन से आसानी से जा सकते है।
- मान्यता है की इस मंदिर का सर्वप्रथम निर्माण राजा भूमि चंद ने कराया था।
- ज्वाला देवी माता को जोता वाली और नगर कोट वाली माता के नाम से भी जाना जाता है।
- इसके बाद महाराज रणजीत सिंह व अन्य राजाओ ने इसका पुनर्निर्माण कराया था।
मंदिर खुलने का समय व आरती | Jwala Devi Temple Timing
- ज्वाला देवी मंदिर प्रतिदिन सुबह 4:00 से दोपहर 12:00 बजे तक खुल जाता है,
- दोपहर के 3:00 बजे से रात के 10:00 तक खुलता हैं।
- ज्वाला देवी मंदिर में सुबह की पहली आरती 5:00 होती है।
- इसके बाद दोपहर की आरती लगभग 12:00 होती है।
- इसके बाद संध्या आरती शाम 7:00 बजे होती है।
ज्वाला देवी मंदिर कहा है? | Jwala Devi Temple location?
ज्वाला देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के कालीधर पहाड़ी में स्थित है। आप यहाँ जाने के लिए नजदीकी कांगड़ा रेलवे स्टेशन व एयरपोर्ट तक जा सकते है। कांगड़ा से ज्वाला मंदिर की दूरी 30 किलोमीटर है। आप यहाँ से बस या टैक्सी से जा सकते है।
इतिहास | History
पौराणिक कथा अनुसार माता सती ने जनकल्याण के लिए पृथ्वी पर जन्म लिया था। सती का जन्म राजा दक्ष के यहाँ हुआ और उनके पिता राजा दक्ष उनसे अत्यंत प्रेम करते थे। जब सती विवाह योग्य हो गई, तो उनके उनके लिए स्वयंबर रखा।
परंतु माता सती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी। राजा दक्ष भगवान शिव को भगवान नहीं एक ढोंगी मानते थे इसीलिए उन्होंने सती का विवाह उनसे नहीं करना चाहते थे। माता सती ने राजा दक्ष का विरोध कर भगवान शिव से शादी कर लिया।
एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया, और यज्ञ में सभी देवी देवताओ को आमंत्रण दिया परंतु भगवान शिव और अपनी पुत्री सती को नहीं बुलाया। यज्ञ का आयोजन की बात सुनकर सती भवगवांन शिव से यज्ञ में चलने का अनुरोध करती है।
परंतु भगवान शिव ने वहा जाने से मना क्रर दिया, और उन्हे भी जाने से मना क्रर दिया। परंतु सती ने उनकी बात नहीं मानी और वो यज्ञ में चली गई। वहाँ जाने पर उनके पिता ने उनका और उनके पति का अनादर और बुरा भला कहा।
यह सब सुन क्रोधित माता सती स्वयं को यज्ञ में कूद गई और अपने शरीर को भस्म कर दी। यह बात जब भगवान शिव को पता चली तो उन्होंने राजा दक्ष का सिर काट दिया और माता सती के शरीर को लेकर वियोग में ब्रह्मांड में घूमने लगे।
यह देख सभी देवता और भगवान विष्णु और ब्राह्मा जी परेशान हो गए, क्योकि अगर भगवान शिव ऐसे रहने से सृष्टि के चक्र में बाधा आ रही थी। फिर सभी देवताओ ने इस समस्या के समंधान के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना की। क्योंकि यह कार्य सिर्फ भगवान विष्णु ही क्र सकते थे।
भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के कई टुकड़े कर दिए। यही माता सती के शरीर का एक अंग उनकी जिह्वा यहाँ गिर गई थी।
बाद में यहाँ मंदिर की स्थापना हुई जिसे ज्योता वाली माँ या ज्वाला माँ के नाम से जाना जाता है इस शक्तिपीठों की की रक्षा का दायित्व भगवान शिव के एक स्वरूप काल भैरव को दिया गया है। काल भैरव माँता सती के सभी शक्तिपीठों की रक्षा करते है।