संकाष्टि चतुर्थी प्रत्येक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है, और इसमे विग्नहर्ता भगवान गणेश जी की पूजा की जाती है। प्रत्येक माह में आने वाली संकाष्टि चतुर्थी को अलग-अलग नाम से जाना जाता है।
- किसी भी शुभ या मंगल कार्य करने से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
- बिना गणेश पूजन किए किसी पूजा को पूर्ण नहीं माना जाता है, और पूजा सफल नहीं होती है।
- संकाष्टि चतुर्थी में भगवान गणेश की पूजा करने से सभी संकटों का नाश होता है, और घर में सुख-सम्बरिद्धी आती है।
- भगवान गणेश को विग्नहर्ता की उपाधि दि गई है, इसीलिए इनकी पूजा से जीवन के सभी विघ्न खत्म हो जाते है।
पूजा विधि | Puja Vidhi
- सर्वप्रथम स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र पहने।
- गणेश जी की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान करे।
- भगवान के सामने दीप जलाए।
- इसके बाद तिलक करे, फूल की माला अर्पित करे।
- इसके बाद मोदक, फल का भोग लगाएँ।
- अंत में गणेश आरती करे।
संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा | Sankashti Chaturthi Vrat Katha
प्राचीन काल की बात है, किसी नगर में एक कुम्हार रहता था। कुम्हार प्रतिदिन मिट्टी के बर्तन बनाता, और उसे आँव में पकने के लिए डाल देता। जब भी कुम्हार आँव में मिट्टी के बर्तन डालता, तो उसके बर्तन कच्चे रह जाते थे।
बर्तन कच्चे रह जाने से वह परेशान हो गया। एक दिन वह परेशान होकर बैठा, तो उसे एक व्यक्ति ने कहा, तुम आँव में मिट्टी के बर्तन के साथ पड़ोस के बच्चे को उठाकर उसके साथ डाल दो, तुम्हारे बर्तन पक जाएंगे।
कुम्हार ने पड़ोस में रहने वाली महिला के बच्चे को उठा लिया, और मिट्टी के बर्तन के साथ आँव में डाल दिया। बच्चा न मिलने से महिला परेशान हो गई, और इधर-उधर अपने बालक को ढूढने लगी। महिला भगवान गणेश की आराधना करती थी, और वह हर संकाष्टि चतुर्थी को व्रत व पूजन किया करती थी।
अगले दिन जब कुम्हार ने आँव से मिट्टी के बर्तन निकाले तो बर्तन पक गए थे, लेकिन आग में बच्चा बिल्कुल सही सलामत था। बच्चे को सही सलामत देख कुम्हार डर गया। डर कर कुम्हार राजा के महल में गया, और उसके साथ हुई घटना को महिला और उसके पुत्र की जादूगरी का नाम देकर घटना बताई।
राजा ने उस महिला को बुलाया, और कुम्हार के साथ ऐसे घटना होने का कारण पूछा। तब महिला ने कहा यह तो भगवान गणेश की महिमा है, उन्होंने ही उसके मासूम बच्चे की जान बचाई है।
फिर उसने संकाष्टि चतुर्थी व भगवान गणेश की महिमा का गुणगान किया, और पूजा विधि और लाभ बताएँ, और राजा को कुम्हार की गलती बताई, उसकी गलती जान राजा ने उसे कड़ी सजा सुनाई। कुम्हार को उसकी गलती का एहसास हुआ, और वह क्षमा मांगने लगा।