वैभव लक्ष्मी व्रत में माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। तथा इस व्रत को शुक्रवार को किया जाता है।
- वैभव लक्ष्मी व्रत करने से आपका घर धन, सुख समृद्धि से भरा रहता है।
- इस व्रत को करने से आपके जीवन की सारी परेशानी और गृह क्लेश से मुक्ति मिलती है।
- इस व्रत को कम से कम 11 और अधिकतम आप इच्छा और सामर्थ्य के अनुसार कर सकते है।
एक समय की बात है। शीला नाम की महिला अपने पति के साथ रहती थी। शीला बहुत ही धार्मिक थी और भगवान पर उसकी आस्था अटूट थी। उसके पास ईश्वर ने जितना भी दिया था वह उसी मे खुश थी।
एक बार उसका पति का संगति गलत लोगों से हो गई वह शीघ्र अमीर होने का स्वप्न देखने लगे। बुरे दोस्तों के साथ रहने से वह शराब, जुआ आदि खेलने लगा इसी आदतों की वजह से वह अपना सारा धन गवा दिया।
अपने पति और घर की हालत देख कर शीला बहुत दुखी हुई, लेकिन उसको भगवान पर पूर्ण भरोसा था की वो सब कुछ ठीक कर देंगे।
एक दिन दोपहर में किसी ने दरवाजे पर आवाज दी और शीला बाहर आई, उसने देखा दरवाजे पर पड़ोस की माता जी खड़ी है, उनके चेहरे पर एक विशेष तेज था।
माता जी को शीला घर के अंदर ले आई और बैठाया। तब माता जी ने शीला से कहा- हर शुक्रवार को लक्ष्मी जी के मंदिर में आती हु ,लेकिन शीला समझ नहीं पाई। फिर माता जी ने बोला तुम काफी दिन से मंदिर नहीं आई तो मै तुम्हें देखने चली आई।
माता जी के प्रेम भरी बातों से शीला के आँख आँसू से भर आई। फिर शीला ने अपनी सारी व्यथा सुनाई। तब माता जी ने शीला को बताया की माता लक्ष्मी धन की देवी है। तू उनका व्रत विधि पूर्वक कर तेरी सारी समस्या खत्म हो जाएगी।
शीला ने पूछा व्रत की विधि क्या है? तब माता जी ने बोला माता लक्ष्मी का व्रत की विधि बहुत सरल है, इस व्रत को वैभव लक्ष्मी व्रत कहा जाता है। इस व्रत को करने से सभी मनोकामना पूर्ण होती है।
शीला यह सुन कर खुश हो गई और आँख बंद कर के व्रत करने का संकल्प लेने लगी। जैसे ही आँखें खोली तो माता जी उसे नहीं दिखी तो वह सोचने लगी ये माता जी कहा गई? यह माता कोई और नहीं स्वयं माँ लक्ष्मी थी जो शीला को राह दिखने आई थी।
दूसरे दिन ही शुक्रवार था, शीला प्रातः काल उठकर स्नान कर के माता जी की बताई विधि के अनुसार पूजा की प्रसाद चढ़ाया। पूजा के पश्चात यह प्रसाद सबसे पहले अपने पति को खिलाया। प्रसाद खाते ही उसके पति के व्यवहार में परिवर्तन आया और वह शीला को मारा भी नहीं।
यह देखकर शीला के मन में वैभव लक्ष्मी व्रत के लिए श्रद्धा बढ़ गई। अब शीला ने वैभव लक्ष्मी व्रत का श्रद्धापूर्वक 21 व्रत किया और 21वे शुक्रवार को माता जी के बताने के अनुसार उद्यापन किया, और 7 औरतों को वैभव लक्ष्मी किताब उपहार में दिया।
और माता लक्ष्मी से प्रार्थना की “हे माता लक्ष्मी मैंने आपका वैभव लक्ष्मी व्रत करने का मन्नत मांगी थी जो आज पूर्ण किया है, हे माँ मेरी सारी विपतिया दूर करिए”।
व्रत के प्रभाव से शीला का पति ने सारे बुरे कार्यों को छोड़ दिया और एक अच्छा आदमी बन गया। और अब कड़ी मेहनत करने लगा। अब घर में सुखशांति आ गई और वह सुखपूर्वक रहने लगे।
अतः जो भी व्यक्ति वैभव लक्ष्मी माँ का व्रत करता है उसकी जीवन खुशियों से भर जाता है और घर धन धान्य से भरा रहता है।
वैभव लक्ष्मी आरती
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत , ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभ दाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता।
सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥