हिन्दू धर्म में तुलसी नाम के पौधे का शालिग्राम (विष्णुजी) से विवाह कराना ही तुलसी विवाह के नाम से जाना जाता है। हर साल नवंबर माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को तुलसी विवाह औपचारिक रूप से मनाया जाता है।
- तुलसी को माता लक्ष्मी का तथा शालिग्राम को भगवान विष्णु एक स्वरूप माना जाता है।
- इसीलिए तुलसी और शालीग्राम का औपचारिक रूप से विवाह किया जाता है।
- हर साल देवउठनी एकादशी के अगले दिन तुलसी विवाह होता है।
- हालाँकि गणनाओ के आधार पर एकादशी के दिन ही तुलसी विवाह पड़ जाता है।
- तुलसी विवाह द्वादशी की शाम को सूर्यास्त के बाद सम्पन्न होता है।
- तुलसी विवाह से जिन माता पिता की कन्या नहीं है, वो तुलसी और शालिग्राम का विवाह करा कर कन्यादान सुख को प्राप्त कर सकते है।
- तुलसी विवाह से आपको भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी आपकी सारी मनोकामना पूर्ण करती है, व घर में सुख -शांति आती है।
तुलसी विवाह पूजा 2024 | Tulsi Vivah 2024
साल 2024 में तुलसी विवाह पूजा 12 नवंबर 2024 को मनाई जाएगी। इसकी द्वादशी तिथि का आरंभ 12 नवंबर की शाम 04:09 मिनट पर होगी, तथा समाप्ति अगले दिन 13 नवंबर 2024 की दोपहर 01:01 pm पर होगी।
महत्व
मान्यता है की जिस किसी माता पिता की कन्या नहीं है, और वह कन्यादान सुख से वांछित है. तो वो कार्तिक मास की द्वादशी तिथि को तुलसी और शालिग्राम का विवाह करा कर कन्यादान का सुख प्राप्त कर सकते है।
देवउठनी एकादशी के दिन भगवान श्री हरि विष्णु 4 मास की निद्रा के बाद उठते है, और तुलसी को माता लक्ष्मी का एक रूप माना जाता है और वह उनसे अत्यधिक प्रेम करते है इसलिए वह उनकी गुणगान सुनने को इच्छुक रहते है।
इस समय व्यक्ति तुलसी और शालिग्राम का औपचारिक विवाह कराने से व्यक्ति को कनीदान का सुख और भगवान विष्णु माता लक्ष्मी का विशेष आशीर्वाद मिलता है।
पूजा विधि
- सर्वप्रथम आसान पर गंगाजल छिड़क उसपर गणेश जी को विराजमान कराएंगे।
- इसके बाद एक आसान पर तुलसी व एक आसान पर शालिग्राम को विराजमान कराये।
- इसके बाद घी का एक दीपक जलाए।
- कलश में गंगाजल भर के आम के पल्लो के साथ पूजा स्थल पर रखे।
- इसके बाद गणेश जी और शालिग्राम का रोली से तिलक करे, तथा तुलसी जी को सिंदूर अर्पित करे।
- भगवान शालिग्राम और तुलसी जी को दूध में भिगोई हुई हल्दी लगाए।
- फूल की माला, व फूल चढ़ाए।
- तुलसी जी को 16 शृंगार का सभी समान चढ़ाए।
- इसके बाद शालिग्राम की प्रतिमा को संभाल कर हाथ में लेकर तुलसी जी सात बार परिक्रमा करनी है।
- इसके बाद शालिग्राम और तुलसी का मंत्र करे।
- अंत में आरती अवश्य करे।
- इसके पूजा पूर्ण होने और और उसको सफल करने की विनती करे।
तुलसी विवाह कथा | Tulsi Vivah Katha
पौराणिक कथा के अनुसार समुन्द्रमंथन से उत्पन्न जलधर नाम के राक्षस बहुत ही ताकतवर था। जलधर का विवाह वृंदा नाम की महिला से समापन्न हुआ। वृंदा एक पतिव्रता और पुण्य आत्मा थी। वृंदा की पवित्रता से जालंधर और अधिक शक्तिशाली हो गया, और उसने अपनी शक्तियों का दुरपयोग शुरू कर दिया।
जालंधर की धृष्टता से परेशान सभी देवता, भगवान विष्णु से सहायता मांगने लगे। भगवान विष्णु ने एक प्लान बनाया, और वह वृंदा के पास जालंधर का रूप धारण कर उसके पास गये उसकी पतिव्रता को समाप्त करने।
वृंदा की पवित्रता को समाप्त कर, भगवान ने जालंधर ने वध कर कर दिया। जब इसका समाचार वृंदा को मिला, तो उसने भगवान को श्राप दिया की वो एक पत्थर का बन जाए।
वृंदा के श्राप से भगवान विष्णु पत्थर के बन गए। भगवान विष्णु के पत्थर बनने से सभी जगह हाहाकार मच गया। तब माता लक्ष्मी ने वृंदा से प्रार्थना की और बोली भगवान विष्णु ने जनकल्याण के लिए तुम्हरे पति का वध किया है।
तब वृंदा ने भगवाब विष्णु को दिया हुआ श्राप वापस दिया। इसके बाद वह अपने पति के साथ सती हो गई। जिस जगह वृंदा सती हुई, वहा एक पौधा निकला जिसे तुलसी कहा और एक पत्थर में खुद का रूप बता के बोले ‘मै बिना तुलसी के कोई पूजा का प्रसाद ग्रहण नहीं करूंगा। इसीलिए भगवान शालिग्राम (पत्थर) के साथ तुलसी की पूजा व विवाह होता है।