शीतला अष्टमी चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। शीतला अष्टमी में माता शीतला की पूजा की जाती है, तथा इन्हे बासी भोजन का भोग लगाया जाता है, तथा प्रसाद के रूप में यही ग्रहण भी किया जाता है।
- शीतला अष्टमी को बसोड़ा नाम से भी जाना जाता है।
- अष्टमी में घर में अग्नि नहीं जलायी जाती है, न ही ताजा भोजन बनाया जाता है।
शीतला अष्टमी 2024 | Sheetala Ashtami 2024
इस साल 2024 मे शीतला अष्टमी 2 अप्रैल (दिन मंगलवार) को मनाया जाएगा। तथा पूजा का शुभ मुहूर्त 6:10 AM से 6:40 PM तक रहेगा।
अष्टमी तिथि आरंभ होगी 1 अप्रैल 2024 को 09:09 PM से तथा समाप्त होगी 2 अप्रैल 2024 को 8:08 PM पर।
शीतला अष्टमी
- शीतला अष्टमी से एक दिन पहले सप्तमी के रात्री को भोजन गृह को साफ कर भोग के लिए प्रसाद बनाया जाता है।
- अष्टमी के दिन भोजन नहीं बनाया जाता है, क्यू की इससे माता नाराज हो जाती है।
- माता शीतला को भोग मीठे चावल, दही, पुआ, नमकपारे ठंडे जल से लगाया जाता है।
- इस दिन ठंडे भोजन ही ग्रहण करना चाहिए, और घर में चूल्हा भी नहीं जलाया जाता है।
शीतल अष्टमी व्रत कथा
एक बार माता शीतला पृथ्वी पर आई और उन्होंने सोचा चलो देखती हु, यहाँ कौन-कौन मेरी पूजा करता है। इस बात का पता करने माँ शीतला राजस्थान के डूंगरी गाँव में गई। गाँव में जाते ही माता ने देखा वहाँ उनका कोई मंदिर नहीं है, और न ही उनकी कोई पूजा करता है।
माता शीतल एक वृद्ध महिला का रूप धारण कर गलियों में घूम रही थी, तभी किसी ने अपने छत से चावल का उबला हुआ पानी माता शीतला के ऊपर फेक दिया। उबला पानी गिरने से माता शीतला का शरीर जलने लगा, और वह सहायता मांगने के आवाज लगाई पर उनकी सह्यता किसी ने नहीं की।
उसी गाँव में एक कुम्हार महिला भी थी, जो अपने घर के सामने बैठी थी। उसने देखा की एक वृद्ध महिला जल गई है, और उसे सहायता चाहिए। उसने तुरंत माँ शीतल से कहाँ आप यहाँ आकर बैठ जाइए, मै आपके उपर ठंडा पानी डालती हूँ जिससे आपको जलन से राहत मिलेगी।
माँ शीतला वहा जा कर बैठ गई, और कुम्हारन ने पानी डाला तो आराम मिल गया। तब कुम्हारन ने शीतला माता से कहा, मेरे घर में शाम को रबड़ी व दही है उसे आप खा लीजिए आराम मिलेगा।
माता शीतल ने दही और रबड़ी खा लिया, और उन्हे ठंडक तथा आराम मिला। फिर कुमारन ने कहा बूढ़ी मैया आओ मै तुम्हरे बाल में कंघी कर दु, बहुत उलझे हुए है। कुम्हारन कंघी कर ही रही थी की उसकी नजर सिर में पीछे की तरफ आँख पर गई, जिसे देखकर वह डर गई और भागने लगी।
कुम्हारन को भागता देखकर माता शीतला ने उससे कहा “रुक जा बेटी, मै कोई भूत नहीं हूँ बल्कि देवी शीतला हूँ, मै यहाँ देखने आई थी की कौन मेरी पूजा करता है और कौन नहीं”। माता ने इतना बोलकर कुम्हारन के सामने अपने दिव्य रूप में आ गई, जिसे देखकर कुम्हारन रोने लगी, और बोली माँ मै आपको कहाँ बैठाऊ, मेरे पास तो कुछ है ही नहीं।
कुम्हारन की बात सुनकर माता शीतला ने उसके आँगन में खड़े गधे पर बैठ कर पूरे घर के दरिद्रता को खतम कर दिया, और कुम्हारन से वरदान मांगने को कहा। तब कुम्हारन ने कहा हे माँ कृपा कर के आप इस गाव में विराजमान हो जाए, और जिस तरह मेरी दरिद्रता दूर की है वैसे ही जो भी भक्त आपकी होली के बाद सप्तमी को भक्ति भाव से पूजा करे और अष्टमी को बासी भोजन का भोग लगाए उसके सारे कष्ट हर लेना, तथा जो भी महिला आपका व्रत करे उसको सुहाग बना रहे इसका आशीर्वाद देना।
माता शीतला ने कुम्हारन को वरदान दे दिया, और बोली मेरा व्रत रखने का मुख्य रूप से अधिकार कुम्हार लोगों का होगा, इतना बोल वह अंतर्ध्यान हो गई। अब राजस्थान का डुमरी एक मात्र स्थान है जहां हर साल शीतल अष्टमी का मेला लगता है।