पौष माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को सफला एकादशी कहा जाता है, सफला एकदशी में भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है।
सफला एकादशी व्रत को करने से आपके जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिलती है। इस व्रत को करने के एक दिन पहेले से ही शुद्ध शाकाहारी भोजन करना चाहिए।
सफला एकादशी 2024
सफल एकादशी 2024 मे दो बार पद रही हैं, 7 जनवरी और 26 दिसम्बर। 7 जनवरी 2024 को पड़ने वाली एकादशी का पूजा का शुभ मुहूर्त प्रातःकाल 8:33 से है, जो दोपहर 12:27 तक रहेगा। 26 दिसंबर 2024 को पड़ने वाली सफला एकादशी के पूजा का शुभ मुहूर्त प्रातः काल 7:12 से 8:30 तक है।
सफला एकादशी की पूजा विधि
- प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि करे।
- इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराये।
- भगवान विष्णु के सामने घी का दीपक जलाए।
- दीपक हमेशा भगवान के दाहिने हाथ की तरफ रखा जाता है।
- इसके बाद भगवान विष्णु का चंदन से तिलक करे, और पुष्प की माला अर्पित करे।
- पीले पुष्प तथा तुलसी दल अर्पित करे।
- इसके बाद भगवान को भोग लगाए।
- सफला एकादशी की कथा करे।
- अंत में आरती अवश्य करे।
पूजा सामग्री
फल, धूप, चंदन, सुपारी, पंचामृत, दीपक, घी, गंगाजल, मिठाई, पीला वस्त्र।
सफला एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में चंपवाती राज्य में महिष्मत नामक राजा राज्य करता था। राजा महिष्मत के 4 पुत्र थे। 4 पुत्रों में सबसे बडा पुत्र लूम्पक था। लूम्पक बहुत ही पापी व दुराचारी प्रवित्ती का था।
लूम्पक मदिरापान, दूसरों को कष्ट, पशुओ की हत्या, महिलाओ का अपमान किया करता था। वह अपने पिता के सम्मान की बिल्कुल भी परवाह नहीं करता था। जब राजा को लूम्पक की आदतों में सुधार नहीं दिखा तो, वह उसे राजमहल से बाहर निकाल दिए।
महल से निकाले जाने के कारण उसके सभी दोस्तों ने भी उसका साथ छोड़ दिया, और वह दर – दर भटक रहा था। अंत में लूम्पक ने निर्णय लिया की वह दिन में वन मे रहेगा, तथा रात्री को नगर में लूट – पाट करेगा।
अपने विचारनुसार वह रात्री को नगर में चोरी करता, तथा दिन में वन में पशुओ का शिकार कर उन्हे मार कर उनका भोजन करता। चोरी करते हुए गाव के लोगों ने लूम्पक को कई बार देखा, परतू राजा महिष्मत के डर से छोड़ देते थे।
जंगल में जिस स्थान पर लूम्पक रहता था, वह एक पीपल का वृक्ष था। इस वृक्ष पर भगवान का निवास माना जाता था। एक बार पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को लूम्पक की तबीयत खराब हो गई।
पूरी रात वह ठंड में ठिठुर रहा था। सुबह जब उठा तो मूर्छा खा के गिर पड़ा। थोड़ी देर बाद सूर्य भगवान की गर्मी पाकर, वह मूर्छा से उठा। उठा तो उसे तीव्र भूख लगी, और वह भोजन की तलाश में निकल पड़ा।
लूम्पक के शरीर में इतनी क्षमता नहीं थी, की वह किसी पशु का शिकार कर भोजन ग्रहण कर सके। अतः वह पास में वृक्ष से गिरे हुए फल को उठता है, और पीपल के पेड़ के नीचे रख देता है।
और भगवाब से प्रथन करता है “हे प्रभु आप ही इस फल को ग्रहण करे”।और वही पीपल पेड़ के नीचे बैठ गया और पूरी रात तबीयत ठीक न होने के कारण सो नहीं पाया।
इसी दिन एकादशी थी, और इसने अनजाने ने में एकादशी का व्रत कर लिया था। जिससे भगवान प्रसन्न हो गए। दूसरे दिन प्रातः काल होते ही एक घोडा आया जिसे सुंदर वस्तुओ से सजाया गया था।
तभी आकाश से तीव् ध्वनि वाली आवाज आई “ हे लूम्पक तूने श्री हरि विष्णु की आराधना की है जिससे तेरे सारे कष्ट नष्ट हो गए है, तू इस सफेद घोड़े पर बैठ के अपने पिता के राज्य को वापस चला जा वहाँ सब तेरा इंतजार कर रहे है”।
आकाश वाणी सुनकर लूम्पक भगवान विष्णु की जयजयकार करने लगा और सफेद घोड़े पर बैठ कर अपने राज्य को चला गया। लूमपक के पिता राजा महिष्मत उसे देखकर खुश हो गए और उसे गले लगा लिए।
कुछ ही दिन बाद राजा ने अपने पुत्र लूम्पक को राजपाठ का कार्य भार सौप दिया। अब लूमपक सारे बुरों कार्यों को छोड़ चुका था और श्री हरि की महिमा गुणगान किया करता था।
जब लूमपक वृद्ध हो गया तो उसने भी अपने पुत्र को राजा बना दिया और खुद भगवान विष्णु की आराधना करने जगल में प्रस्थान कर गया।
लाभ
- सफला एकादशी के व्रत तथा कथा करने से आपको अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है।
- आपके जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिलती है।
- मानसिक शांति व विकास होता है।
- घर में सुख संवृद्धि व धान्य की वर्षा होती है।
- आपकी सारी मनोकामना पूर्ण होती है।