नरसिंह जयंती पर भगवान विष्णु के चौथे स्वरूप नरसिंह की पूजा की जाती है। यह त्योहार वैशाख माह (अप्रैल-मई) के शुक्ल पक्ष की चौदहवीं तिथि को मनाया जाता है।
भगवान विष्णु ने नरसिंह का रूप धारण कर हिरणकश्यप का वध कर अपने भक्त प्रहलाद के प्राणों की रक्षा की थी। जिस दिन भगवान ने हिरणकश्यप का वध किया था, वह दिन वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चौदहवीं तिथि थी, इसलिए इसे नरसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है।
- भगवान विष्णु का नरसिंह स्वरूप सिर सिंह का और धड़ मनुष्य का है।
- भगवान विष्णु ने यह स्वरूप अपने परम भक्त प्रहलाद के प्राणों की रक्षा के लिए लिया था।
- भगवान नरसिंह की पूजा करने से घर में सुख-शांति और सभी कष्टों, संकटों से मुक्ति मिलती है।
नरसिंह जयंती 2025 | Narasimha Jayanti 2025
वर्ष 2025 में नरसिंहा जयंती 11 मई दिन रविवार को पड़ेगा। इसकी तिथि की शुरुआत 10 मई की शाम 5:30 बजे से होगा जो अगले दिन 11 मई 2025 को 8:01 मिनट तक रहेगा।
पूजा का शुभ मुहूर्त 04:18 मिनट से 06:54 मिनट तक होगा।
नरसिंह जयंती पूजा | Narasimha Jayanti Puja
- भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को पंचामृत से स्नान कराये।
- इसके बाद तिलक करे और घी का दीपक जलाए।
- इसके बाद पीले रंग के पुष्प चढ़ाए।
- भगवान को चने की दाल और गुड का तथा मिठाई का भोग लगाए।
- इसके बाद भगवान नरसिंह मंत्र का जाप करना चाहिए।
- भगवान नरसिंह की कथा करे।
- अंत में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती करे।
- पूजा के बाद असहाय गरीबों को क्षमतानुसार वस्तु, तील, वस्त्र आदि दान करे।
नरसिंहा जयंती कहानी | Narasimha Jayanti Kahani
पौराणिक कथाओं के अनुसार, हिरण्यकश्यप नाम का एक राक्षस था। उसने भगवान शिव और ब्रह्मा की कठोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद मिला कि ‘ना तो उसे कोई इंसान मार सकता है, ना ही कोई जानवर; ना ही कोई अस्त्र, ना ही कोई शस्त्र; और ना ही कोई देवता, ना ही कोई दैत्य। उसकी मृत्यु न तो रात में होगी और न ही दिन में।’
हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद था, जो भगवान विष्णु की आराधना करता था। जबकि हिरण्यकश्यप केवल भगवान शिव और ब्रह्मा जी को मानता था, और वह भगवान विष्णु को तुच्छ समझता था और भगवान नहीं मानता था।
हिरण्यकश्यप ने अनेक बार प्रहलाद को समझाया कि वह भगवान विष्णु की पूजा न करे, परंतु जब उसने यह बात नहीं मानी तो हिरण्यकश्यप ने अपने ही पुत्र को जान से मारने का प्रयास किया। हालांकि, उसका हर प्रयास असफल हो जाता था।
एक बार हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को दरबार में बुलाया और उससे पूछा, “तुम्हारा भगवान कहाँ है? बताओ, वरना मैं तुम्हारे शरीर के दो टुकड़े कर दूंगा।” यह सुनकर, प्रहलाद ने उत्तर दिया, “भगवान हर जगह हैं, चाहे वह स्तंभ हो या कण-कण।” यह सुनकर हिरण्यकश्यप गुस्से में आ गया और तलवार लेकर प्रहलाद की तरफ बढ़ा।
तभी प्रहलाद ने अपने पिता से कहा, “महाराज, भगवान विष्णु कण-कण में हैं।” यह सुनकर हिरण्यकश्यप और भी क्रोधित हो गया। उसने एक खंभे पर गदा मारते हुए कहा, “इस खंभे में भी है भगवान तेरा? देखता हूँ, तुझे आज कौन बचाता है।
इतना कहते ही खंभे से नरसिंह रूप, अर्थात आधा शरीर इंसान का और आधा शेर का, भगवान विष्णु प्रकट हुए। उन्होंने हिरण्यकश्यप का अपने नाखूनों से चीर-फाड़ कर वध कर दिया।