खजुराहो मंदिर भारत के मध्यप्रदेश राज्य के छतरपुर जिले में स्थित है। यह स्थल प्रमुख रूप से हिन्दू और जैन मंदिर व उनकी नागर शैली के लिए लोकप्रिय है। इसका निर्माण चंदेल शासक द्वारा 950 से 1050 के दौरान कराया गया है। इसी स्थापत्य कला और नमूनों के कारण संन 1986 में खजुराहो को विश्व विरासत स्थल में शामिल किया गया।
- प्रारंभ में खजुराहो को खजूरपूरा या खजूरवाहिका नाम से जाना जाता था।
- खजुराहो सम्पूर्ण विश्व में अपने स्थापत्य कला व मुड़े हुए पत्थर से निर्मित मंदिर के लिए अत्यंत प्रसिद्ध है।
- खजुराहो मंदिर को नागर शैली में बना हुआ है, जिसको देखने के लिए भारत के अनेक शहर व विदेशी पर्यटक भी आते है।
- यूनेशकों ने खजुराहो को 3 भागों में विभाजित किया है – पश्चिमी, पूर्वी, दक्षिणी।
- विभाजित किए गए भाग में पश्चिम भाग में अधिकतम हिन्दू मंदिर है, व पूर्वी भग में जैन मंदिर है।
- इसके आलवा दक्षिण भाग में अन्य की अपेक्षा बहुत कम मंदिर है।
- पश्चिम व दक्षिण भाग में बने मंदिर भगवान शिव, भगवान विष्णु व गणेश जी व सूर्य को समर्पित है।
- पश्चिम भाग के मंदिरों में कन्दरिया महदेव मंदिर, विश्वनाथ मंदिर, जगदंबा मंदिर, सिंह मंदिर, चित्रगुप्त मंदिर, नंदी मंदिर आदि है।
- पूर्वी समूह के मंदिरों को 2 समूहों में विभाजित किया गया है।
समय | Timing
खजुराहो मंदिर प्रतिदिन सुबह 6:00 बजे से खुलते हैं और मंदिर शाम 6:00 बजे बंद हो जाते हैं। सप्ताह के सभी दिन: खजुराहो के मंदिर पूरे सप्ताह, रविवार से शनिवार तक, खुले रहते हैं।
इतिहास | History
खजुराहो मंदिर का निर्माण 950 से 1050 के बीच चंदेल राजाओ द्वारा कराया गया था। चंदेलों की उत्पत्ति का वर्णन चंदबरदाई ने किया है। उसके अनुसार काशी का एक राजपण्डित था, जिसकी पुत्री का नाम हेमवती था।
हेमवती अत्यंत सुंदर थी, जिसको देख चंद्रदेव मोहित हो गए। एक बार हेमवती का हरण करने चंद्रदेव पृथ्वी पर मनुष्य रूप में पृथ्वी पर आए, और उन्होंने उसका हरण कर लिया। हेमवती एक पुत्र की माँ व एक विधवा थी।
चंद्रदेव के इस कार्य के कारण हेमवात ने चंद्रदेव पर उसका हरण का आरोप लगाया। तब चंद्रदेव को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने हेमवती को वरदान दिया की तुम्हरा यह पुत्र खजुराहो का वीर राजा बनेगा।
चंद्रदेव की बात मानकर हेमवती काशी छोड़ दूर एक गाँव में रहने लगी। हेमवती का पुत्र वीर और शक्तिशाली था। मान्यता है की 16 वर्ष की आयु में ही उसका पुत्र शेर व किसी भी खतरनाक जानवर को मार देता था।
अपने पुत्र की इस वीरता को देखते हुए हेमवती खुश हुई और उसने चंद्रदेव की पूजा अर्चना कर उन्हे प्रसन्न किया। प्रसन्न चंद्र ने चंद्रवर्मन को एक पारस पत्थर भेट किया जिससे किसी भी वस्तु को चुने से वह सोना बन जाता था। इसके बाद चंद्रवर्मन ने खजुराहो में 85 मंदिरों का निर्माण कराया और उसके बाद उसके उत्तराधिक्रियों ने खजुराहो में अनेक मंदिरों का निर्माण कराया था।