कामाख्या मंदिर माता सती के 51 शक्तिपीठों में से एक है, इस मंदिर में माता सती के गर्भ (योनि) की पूजा की जाती है। यह मंदिर असम राज्य की राजधानी दिसपुर में गुवाहाटी में स्थित है।
मान्यता है कि जब माता सती का राजा दक्ष ने तिरस्कार किया तो. उन्होंने अपने तेज से अपना शरीर भस्मभूत कर लिया था, जिसके बाद माता के भस्मीभूत शरीर को भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से 52 भाग में विभाजित किया, इसमे से माता सती का एक अंग उनकी गर्भ असम राज्य की निलाचल पहाड़ी में गिरा था, माता सती के इसी शक्तिपीठ को माँ कामाख्या मंदिर नाम से जाना जाता है।
- कामाख्या मंदिर में देवी की पूजा व दर्शन करने दूर-दूर से श्रद्धालु आते है।
- कामाख्या मंदिर में प्रत्येक वर्ष जून माह या आषाढ़ में अंबुवाची पर्व मनाया जाता है, तथा इस समय मंदिर को भक्तों के लिए बंद कर दिया जाता है।
- अंबुवाची पर्व माँ कामाख्या के रजस्वला का समय होता है, तथा यह चक्र 3 दिनों तक चलता है।
- यह पर्व कलयुग में प्रत्येक वर्ष में 1 बार, द्वापरयुग में 12 बार, त्रेता में 7, सतयुग में 16 बार आता है।
- कामाख्या माँ के रजस्वला के दिनों में मंदिर को बंद कर दिया जाता है, व इस समय मंदिर का पुजारी पुरुष न होकर एक महिला होती है।
- कामाख्या मंदिर में दर्शन करने के लिए प्रवेश निशुल्क है।
- परंतु यहाँ वीआईपी प्रवेश के लिए शुल्क 500 से 1000 देय है।
कामाख्या मंदिर कहाँ है? | Kamakhya Temple kha hain?
यह मंदिर असम राज्य की राजधानी दिसपुर में गुवाहाटी में स्थित है। यह गुवाहाटी शहर से लगभग 30 किलोमीटर दूर है।
समय | Kamakhya Temple Timimg
कामाख्या मंदिर दर्शन के लिए सुबह 8:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक खुला रहता है, इसके बाद दोपहर 2:30 बजे पुनः खुलता और शाम 5:30 तक खुला रहता है।
रहस्य | Kamakhya Temple Rahasya
कामाख्या मंदिर में मंदिर का गर्भगृह में किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है, बल्कि एक कुंड की पूजा होती है। यह मंदिर तांत्रिक साधनों का केंद्र है। ऐसी मान्यता है की अगर किसी व्यक्ति कोई तंत्र मंत्र किया गया हो, तो इस मंदिर में जाने पर यहाँ के तांत्रिक उस तंत्र को ठीक कहते है।
sकालिका पुराण के अनुसार एक बार राजा दक्ष ने अपने यहाँ विशाल यज्ञ का आयोजन किया तथा उसने सभी देवी देवताओ और ब्राह्मा विष्णु को निमंत्रण दिया परंतु भगवान शिव और माता सती को यज्ञ में नहीं बुलाया।
माता सती को जब पता चला की उनके पिता दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया है तो वह भगवान शिव को साथ चलने का आग्रह करने लगी। परंतु भगवान शिव ने जाने से मना कर दिया और सती को भी वहाँ जाने से मना कर दिया, और बोले ‘बिना निमंत्रण के जाना ठीक नहीं है’।
परंतु माता सती ने उनकी एक न सुनी और वह राजा दक्ष के यहाँ यज्ञ में चली गई। जब राजा दक्ष ने सती को वहाँ देखा तो वह उन्हे तथा भगवान शिव का अपमान करने लगे, जो माता सती से सहन न हुआ।
राजा दक्ष की बात सुनकर माता सती ने उसके यज्ञ के कुंड में कूद कर शरीर त्याग दी। माता सती की देह त्याग के बाद भगवान शिव उनके वियोग में उनके शरीर को लेकर हाथ में लेकर घूमने लगे।
यह देख सभी देवता और ब्राह्मा विष्णु चिंतित हो गए। फिर सभी देवता और ब्राह्मा जी भगवान विष्णु के पास गए क्योंकि इसका समाधान सिर्फ भगवान विष्णु के पास था। सभी के अग्राह पर भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर को सुदर्शन चक्र से काट दिया जो की 52 भागों में विभाजित हुआ।
जिन जगहों पर माता सती के शरीर के अंग गिरे वहाँ पर शक्तिपीठ की स्थापना हुई। माता सती का अंग उनका गर्भ असम राज्य में गिरा था जिसे माँ कामाख्या के नाम से जाना जाता है।