जितिया व्रत कथा कई रूपों में प्रस्तुत की जाती है, लेकिन इसका मूल उद्देश्य हमेशा संतान की लम्बी आयु और उसके समृद्धि की कामना होती है।
- जितिया व्रत को जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से भी जाना जाता है,
- इसमे भगवान जीमूतवाहन की पूजा अर्चना की जाती है।
- इस व्रत को महिलाये अपने संतान की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य के लिए करती है।
- इस व्रत को महिलाये निर्जल उपवास रह कर करती है।
जितिया व्रत कथा | Jitiya Vrat Katha In Hindi
एक समय की बात है। किसी वन में एक चील तथा सियारिन रहती थी। चील तथा सियारिन में गहरी मित्रता थी। चील तथा सियारिन दोनों हर काम को मिल-बाँट के करती, और प्रेम भाव से रहती थी।
एक बार कुछ महिलाये जंगल में आई, और वह किसी जीवित्पुत्रिका व्रत की आपस में बात कर रही थी। यह सब देख चील के मन में जिज्ञासा जग गई, वह महिलाओ के पास गई और व्रत के बारे में पूछने लगी। महिलाओ ने जितिया व्रत के बारे में चील को बताया।
चील तुरंत अपने मित्र सियारिन के पास गई, और उसको जितिया व्रत के बारे में बताया। व्रत को बताने के बाद चील तथा सियारिन ने निर्णय लिया, की वो दोनों भी जितिया माता का व्रत और पूजा विधि विधान से करेगी।
चील तथा सियारिन ने जितिया माता का व्रत का संकल्प लिया, और शाम को पूजा की। पूजा के बाद ही चील और सियारिन को भूख लगने लगी।
सियारिन अपनी भूख बर्दास्त ना कर सकी, और वह जंगल में जाकर शिकार करने चली गई। सियारिन जब माँस को खा रही थी, तब चील ने उसे देख लिया, और व्रत तोड़ने के लिए सियारिन को बहुत डांटा।
लेकिन चील ने अपना व्रत नहीं तोड़ा, और वह सच्चे मन से जितिया व्रत को पूर्ण किया। अगले जन्म में सियारिन और चील का जन्म बहन के रूप में, एक प्रतापी राजा के यहा हुआ। सियारिन का विवाह एक राजकुमार से, तथा चील का विवाह राज्य मंत्री के पुत्र से हुआ।
कुछ समय बीता तो सियारिन ने एक पुत्र को जन्म दिया। जन्म के कुछ दिन बाद ही उसके पुत्र की मृत्यु हो गई। सियारिन के पुत्र के मृत्यु के बाद उसकी बहन चील ने भी एक पुत्र को जन्म दिया, जो जीवित तथा स्वास्थ्य था । यह देख सियारिन को अपनी बहन चील से ईर्ष्या होने लगी।
सियारिन ने अपने बहन के पुत्र तथा पति को जान से मरवाने की कोशिश की, परंतु दोनों ही बच गए। एक दिन देवी माँ सियारिन के स्वप्न में आई, और उन्होंने सियारिन से कहा “यह तुम्हारे पूर्व जन्म के कर्म का फल है, अगर तुम इसे ठीक करना चाहती हो तो माँ जीतिया की व्रत और उपासना करो”।
प्रातः काल उठकर स्वप्न के बारे में सियारिन ने अपने पति को बताया। सियारिन के पति ने यह सुन सियारिन को व्रत करने की अनुमति दे दी, और उसकी बहन चील से माफी मांगने को बोला। इसके बाद सियारिन अपने बहन चील के घर गई, और उससे अपने गलतियों की माफी मांगी। सियारिन को उसकी गलतियों पर पछतावा देखकर चील ने उसे माफ कर दिया।
अगले साल जितिया व्रत पड़ा, यह व्रत सियारिन और उसकी बहन चील दोनों ने एक साथ रखा। माता जितिया सियारिन के व्रत से प्रसन्न हुई, और उसको पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। कुछ दिनों बाद ही सियारिन ने एक सुंदर बालक को जन्म दिया। अब दोनों बहन प्रेम भाव से खुशी-खुशी रहने लगी।
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