निर्मल सिंह महाराज एक महान संतों मे से एक थे। इनका जन्म 7 जुलाई, 1954 को पंजाब के मलेरकोटला मे हुआ था। भक्त इनको “छतरपुर वाले गुरुजी” या “शुकराना गुरुजी” के नाम से भी जनते हैं। गुरुजी को उनके भक्त भगवान शिव का अवतार भी मानते हैं।
दिल्ली के छतरपुर इलाके मे गुरुजी का आश्रम व मंदिर स्थित हैं। इसी मंदिर मे गुरुजी ने वर्ष 2007 मे समाधि ली थी।
- गुरुजी ने पढ़ाई पूरी करने के लिए 1975 में अपना घर छोड़ दिया था।
- गुरुजी ने अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में डिग्री प्राप्त की थी।
- वह एक बहुत प्रसिद्ध संत बने और अनेक शद्धालुओ के संकटो का नाश किया।
- गुरुजी ने 31 मई, 2007 बड़े शिव मंदिर मे समाधि ली थी।
- गुरुजी की समाधि, दिल्ली के छतरपुर के भट्टी माइंस इलाके में बने शिव मंदिर में है।
- इस मंदिर को गुरुजी के भक्त बड़े मंदिर कहते हैं।
गुरुजी का जीवन परिचय | Guruji Biography In Hindi
गुरुजी का जन्म 7 जुलाई, 1954 को पंजाब के मलेरकोटला जिले मे दुगरी गांव में हुआ था। उस दिन की सुबह का नजारा किसी स्वर्ग की अनुभूति से कम नहीं था। उनका जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ था। गुरुजी को निर्मल सिंह महाराज के नाम में भी जाना जाता है। गुरुजीके अन्य नाम भी हैं,जैसे छतरपुर वाले गुरुजी या शुकराना गुरुजी। गुरुजी को उनके भक्त भगवान शिव का अवतार भी मानते हैं।
गुरुजी ने 1975 में अपना घर छोड़ दिया था और उन्होंने 1983 में पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड में लिपिक सहायक के रूप में काम करना शुरू किया। गुरुजी ने अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में डिग्री हासिल की थी। गुरुजी का निधन 31 मई, 2007 को हुआ था। और उनके भक्तों ने उनकी समाधि एक मंदिर के गर्भगृह के बनायी उसका मंदिर को आज बड़े मंदिर के नाम से जाना जाता हैं।
शुकराना गुरुजी मे बचपन से ही आध्यात्मिकता की चिंगारी थी। अपने बचपन से ही गुरुजी अध्यात्म से पूर्ण होने के बावजूद, गुरुजी ने अपनी शिक्षा दीक्षा दुगरी गांव के आसपास प्राप्त की। यहां के स्कूल, कॉलेज और गांव का सौभाग्य उन्होंने स्वीकार किया।
उन्होंने गुरुजी का प्रारंभिक शिक्षा से लेकर राजनीति शास्त्र में स्नातक की डिग्री तक का सफर तय किया। वक्त गुजरते समय, गुरुजी की दिव्यता लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने लगी। और वह बहुत प्रसिद्ध संत बन गए।
गुरुजी ने कभी कोई प्रचार प्रवचन नहीं किया, लेकिन उनकी दिव्यता की चर्चा चारों ओर फैलने लगी। गुरुजी के दर्शन से ही भक्तों की समस्याओं का समाधान हो जाता था। उनके आशीर्वाद से सैकड़ों हजारों लोगों के दुःख कम होने लगे। गुरुजी उन दिनों कई शहरों का भ्रमण किया जैसे जालंधर, चंडीगढ़, पंचकूला, और नई दिल्ली। इन जगहो पर वह बहुत प्रसिद्ध हुए।
गुरु जी के सत्संग में दिव्य आशीर्वाद के साथ प्रसाद में चाय और लंगर दिया जाता है, जिससे हजारों लोगों के असाध्य रोग दूर होने लगे। गुरुजी की कृपा से उनकी समस्याएं हाल होने लगीं। गुरु जी के कुछ भक्तों पर उनकी इतनी कृपा हुई की उनकी दिव्य दृष्टि से वे देवताओं के दर्शन करने लग गए। गुरुजी के शासन में कभी कोई भेदभाव नहीं होता।
गुरुजी के सत्संग में, अमीर से अमीर और साधारण से साधारण, उनके आश्रम किसी भी धर्म संप्रदाय के आदमी आशीर्वाद प्राप्त करने उनके पास आते थे। उनके सत्संग में राजनेताओं, सशस्त्र सेवा कर्मियों, डॉक्टरों, और अनेक व्यापारियों की भीड़ लगी रहती थी।
गुरुजी ने सभी को बिना किसी भेदभाव के समान रूप से आशीर्वाद दिया। उनमें अधिक विश्वास और भक्त का संपूर्ण आत्मसमर्पण था। उन्होंने कहा कि उनका आशीर्वाद हमेशा उनके साथ रहेगा, और यह हमेशा के लिए है, न केवल इस जीवन में बल्कि भक्त के मुक्ति तक। गुरुजी ने कभी कोई उपदेश या रस्म निर्धारित नहीं की, फिर भी उनका संदेश भक्तों तक पहुंच जाता था।
यह केवल भक्ति से ही समझा जा सकता है कि इस विशेष संबंध में भक्त को न केवल खुशी और स्फूर्ति मिलती थी, बल्कि इसके कारण उनमें गहरा बदलाव भी आता था। एक ऐसे स्थिति में पहुंचकर, जहां अनंत शांति और संतोष एक साथ आसानी से प्राप्त होते हैं।
गुरु जी के आस-पास सदैव दिव्य खुशबू महसूस होती थी, जैसे कि गुलाब के फूलों की। आज भी उनकी इस खुशबू से उनके भक्तों को गुरुजी की उपस्थिति का अनुभव होता है। 31 मई, 2007 को गुरुजी ने समाधि ले लिया, लेकिन उन्होंने कभी भी किसी को अपना उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया। क्योंकि कहते हैं, दिव्यता का कोई उत्तराधिकारी नहीं होता।
आज, जब गुरु जी अपने नश्वर रूप में नहीं हैं, तो भी उनका आशीर्वाद भक्तों कर कृपा कर रहा हैं। उनकी कृपा उन लोगों पर भी हैं, जो लोग अपने जीवनकाल में उनसे कभी नहीं मिले।
गुरुजी के 10 मुख्य दिव्य वचन | Guruji Ke Vachan
- वचन 1: गुरु जी ने कहा था “ मै था, मै हूँ, और मै हमेशा रहूँगा। मेरा कोई वारिस नहीं है।
- वचन 2: मेरे लिए मेरा परिवार भी संगत ही है और किसी के पास कोई रूहानी शक्ति नहीं है।
- वचन 3: मैं अपने भक्तों से बहुत प्यार करता हूँ, और उनका बुरा वक्त खत्म कर देता हूँ।
- वचन 4: जब आप अपने जूते बाहर निकलते है, तो अपनी बुद्धि भी बाहर छोड़ कर आया करे। वो मेरे सामने किसी भी काम की नहीं है।
- वचन 5: मेरी सामने फोन का प्रयोग मत करो, वरना तुम्हर आशीर्वाद उसे ही चला जाएगा जिससे आप बात करोगे।
- वचन 6: अगर आप अपनी जिंदगी की लगाम मुझे सौप देते है, तो मै उसे सीधे मोक्ष या निर्वाण तक ले जाता हु।
- वचन 7: अगर किसी के घर से एक सदस्य भी मेरे पास आ जाता है, तो पूरे परिवार को आशीर्वाद मेलेगा।
- वचन 8: सिर्फ किताब से पाठ करना ही पाठ नहीं होता, अपना काम करना, नीत नियमपूर्वक करना भी और अपने परिवार का ध्यान रखना भी पाठ करना होता है।
- वचन 9: सबसे बडा पाठ तब होता है जब पति पत्नी मिलकर बच्चों को संभालते है और घर में शांति रहती है।
- वचन 10: मैंने कहा “रब कदे नजर नहीं आन्दा”- गुरुजी ए कहा “ मेनू त्वाड़े विच नजर आन्दा है” तुम कभी भी भगवान को नहीं देख पाते, मैंने कहा मुझे आप में नजर आते है, और वो मुस्कुरा दिए।