देवुत्थान एकादशी को भगवान श्री हरि विष्णु के चार मास के विश्राम के बाद उठने के रूप में मनाया जाता है।
जो भी शुभ कार्य भगवान विष्णु के शयनकाल में बंद थे वो पुनः देवुत्थान एकादशी से शुरू हो जाते है। इस एकादशी को प्रबोधनी एकदशी हरिबोधनी एकादशी के नाम से जाना जाता है।
देवुत्थान एकादशी 2024 | Devutthan Ekadashi 2024
साल 2024 मे देवुत्थान एकादशी 12 नवंबर 2024 को पड़ रही है। तिथि का 11 नवंबर 2024 को शाम 6:47 मिनट ओर होगा, और समाप्ति 12 नवंबर 2024 को शाम 04:05 मिनट पर होगा। पारण 13 नवंबर को प्रातः काल 06:52 से 08:58 तक होगा।
देवुत्थान एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार किसी नगर में एक राजा तथा उसकी सारी प्रजा एकादशी का व्रत करती थी, यहाँ तक पशु आदि भी एकादशी का व्रत करते थे।
एक दिन राजा के नगर में एक व्यक्ति आया और राजा से आग्रह किया की उसे काम पर रख ले। राजा ने उसे काम पर रख लिया और बोला की तुम्हें प्रत्येक दिन खाने-पीने की सभी चीजें मिलेंगी लेकिन एकादशी के दिन कुछ नहीं मिलेगा।
वह व्यक्ति मान गया, और राजा के यहा नौकरी करने लगा। 15 दिन बाद एकादशी आई और राज्य में सभी ने एकादशी का व्रत रखा। तभी वह व्यक्ति आया और राजा से आग्रह करने लगा की उसे भूख लगी है और खाना बणाने के लिए अनाज दिया जाए।
तब राजा ने उसे उसका वचन याद दिलाया, फिर भी वह नहीं माना तो राजा को उसे अनाज देना पड़ा। प्रतिदिन की तरह वह नदी के किनरे गया और भोजन बनाया, भगवान विष्णु को बोला प्रभु भोजन बन गया है आप आक्रर भोजन ग्रहण करे। भगवान विष्णु आये और भोजन ग्रहण किए।
अब वह व्यक्ति वापस महल में गया, और पुनः अपना काम करने लगा। फिर 15 दिन बाद पुनः एकादशी पड़ी तो व्यक्ति राजा के पास गया और उनसे भोजन बनाने के लिया अनाज मांगने लगा और बोला पिछली बार से ज्यादा अनाज कहिए क्यू की उसका पेट नहीं भरा था।
तब राजा ने बोला तुम अकेले इतना अनाज कैसे कहा लेते हो ? उस व्यक्ति ने कहा मै एकेले नहीं खाता हु मेरे साथ भगवान विष्णु भी भोजन करते है। तब राजा ने कहा तुम झूठ बोल रहे हो भागेवन तुम्हारे यहाँ भोजन करने क्यूँ आएंगे।
व्यक्ति ने कहा अगर आपको भरोसा नहीं है, तो आप नदी के किनारे आ जाना, जब मै भोजन बना लू भगवान के लिए। राजा नदी के किनारे पेड के पीछे छिप गया, और इंतजार करने लगा। जब व्यक्ति ने भोजन बना लिया तो भगवान से बोला “प्रभु भोजन बन गया आप आकर ग्रहण करे”।
परंतु भगवान नहीं आये,तो वह व्यक्ति निरास हो गया और उसने बोला “प्रभु अगर आप आज नहीं आये तो मै जान दे दूंगा” इतना बोल वह नदी में कूदने के लिए गया, तभी भगवान ने आकार उसे रोक लिया।
और उस व्यक्ति के साथ भोजन किया और अपने साथ उसे बैकुंठ ले गए। यह सब होते हुए राजा देख रहा था वह समझ गया की बिना मन के या दिखवा से ईश्वर नहीं मिलते, ईश्वर तो सच्ची मन से उनके ध्यान से भी मिल जाते है।