बुधवार व्रत कथा भगवान गणेश को समर्पित है, इस कथा का पाठ करने मात्र से आपके जीवन में धन, बल, बुद्धि, विद्या की वृद्धि होती है, तथा आने वाले सभी संकटों का नाश होता है।
- इस व्रत को किसी भी महीने की शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार से प्रारंभ कर सकते है।
- बुधवार के दिन गणेश जी का व्रत, पूजा तथा कथा का पाठ करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।
बुधवार व्रत कथा | Budhvar Vrat Katha
प्राचीन काल की बात है। किसी ग्राम में एक साहूकार अपनी पत्नी के साथ रहता था। पति पत्नी दोनों भगवान गणेश की पूजा करते थे, और दिन-दुखियों की मदद करने के लिए हमेसा तत्पर रहते थे। ईश्वर की कृपा से उनके पास धन धान्य की कोई कमी नहीं थी, कमी थी तो बस एक संतान की।
पति पत्नी संतान नहीं होने से दुखी रहते थे। गाव वाले संतान न होने की वजह से उन्हे हमेसा ताने सुनाते थे। पर साहूकार और उसकी पत्नी को ईश्वर पर पूर्ण विश्वास था, ईश्वर जरूर कुछ अच्छा सोच के रखा होगा हमारे लिए।
एक बार पति-पत्नी मंदिर में गणेश जी के दर्शन पूजा अर्चना करने गए। जब वह पूजा करके बाहर आये तो उन्होंने देखा की एक बालक मंदिर की सीढ़ियों पर बैठ कर रो रहा है। उसके पास किसी को ना देखकर पति-पत्नी दोनों बालक के पास गए।
बालक को शांत कराया और उसके माता पिता को ढूढने लगे। जब उस बालक के माता पिता पति पत्नी को नहीं मिले, तो वो बच्चे को मंदिर के पूजारी के पास ले गए। और उन्होंने पूजारी से बोला ये बच्चा हमे रोते हुए मंदिर के बाहर मिला है, क्या आप इसके माता पिता को जानते है? पूजारी ने कहा नहीं।
अब पति पत्नी और पूजारी तीनों लोग बालक के माता पिता को ढूढने लगे। काफी देर ढूढने पर बच्चे के माता पिता नहीं मिले तो, पूजारी ने साहूकार और उसकी पत्नी को बोला, आप इस बालक को अपने घर ले जाइए। अगर इसके माता पिता इसे ढूढते हुए आये तो मै उन्हे लेकर आपके घर आ जाऊंगा।
साहूकार और पत्नी बच्चे को लेकर अपने घर चले गए। काफी समय बीत गया और बालक के असली माता पिता का कोई पता नहीं चला, तो उन्होंने गाव के सरपंच से अनुमति लेकर बच्चे को गोद ले लिया। और उस नन्हे से बालक का नाम गणेश रख दिया।
कुछ दिन बाद गाव में एक पति पत्नी आए, जो चोर थे। गाव में जाकर उन्हे पता चला की गाव में सबसे ज्यादा धनी व्यक्ति साहूकार है, जिसकी अपनी कोई संतान नहीं है। उन्होंने एक बच्चे को गोद लिया है, जिसके माता पिता का कोई पता नहीं है।
धोखेबाज पति पत्नी अब विचार करने लगे, की साहूकार को कैसे लूटा जाए। तभी उन्होंने योजना बनाया की वो उस बच्चे के असली माता पिता बन कर जाएंगे। योजना बना कर पति पत्नी दोनों मंदिर में जाकर बैठ कर रोने लगे। उन्हे रोता देखर मंदिर के पूजारी आये, और उनके रोने का कारण पूछने लगे।
पति पत्नी ने बताया, की आज से 4 साल पहले इसी मंदिर में हमारा बच्चा खो गया था। उसे ही याद कर के हम रो रहे है। तब से हम अपने बच्चे को अलग-अलग जगह खोज रहे है, पर वह हमे कही नहीं मिला।
पूजारी जी ने बोला, एक बालक है जो उन्हे 4 साल पहले मंदिर की सीढ़ियों पर मिला था। शायद वह आपका ही पुत्र हो। वह बालक गाव के साहूकार के घर पर है। आप लोग मेरे साथ चलिए, मै आपसे आपके पुत्र को मिलवाता हु। इतना कहकर पूजारी उन दोनों पति पत्नी को लेकर साहूकार के घर चल दिए।
वहा जाकर पूजारी जी ने साहूकार को बताया की गणेश के असली माता पिता मिल गए है, और वह गणेश को लेने आये है। यह सुनते ही साहूकार और उसकी पत्नी दोनों बहुत दुखी हुए। लेकिन उन्होंने गणेश को उसके असली माता पिता को सौपने के लिए तैयार हो गए।
शाम का वक्त था, साहूकार ने उन दोनों पति पत्नी से बोला, आप लोग आज विश्राम करे और कल प्रातः काल होते ही निकल जाइएगा। यह सुनते ही पति पत्नी दोनों खुश हो गए, क्यू की उन्हे चोरी करने का मौका मिल गया था।
रात्री को जब साहूकार और उसकी पत्नी सोने चले गए, तो दोनों पति पत्नी उठे और चोरी करने के लिए तिजोरी को तोड़ने लगे। आवाज सुनकर घर का नौकर जग गया, और उसने जा कर देखा तो वही पत्नी पत्नी थे, जो खुद को गणेश का माता पिता बता रहे थे।
नौकर ने कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया, और तेजी से मालिक को बुलाने लगा। आवाज सुनकर साहूकार और उसकी पत्नी दौड़ते हुए आए, और चिल्लाने का कारण पूछने लगे। चोर ने बताया की ये दोनों पति पत्नी तिजोरी से चोरी कर रहे थे।
यह सब देखकर वह समझ गए ये दोनों गणेश के माता पिता नहीं, चोर है। साहूकार ने गणेश को देने से मना कर दिया, और बोले कि चले जाओ यहा से। पर उन दोनों धोखेबाज पति पत्नी ने निर्णय किया की वो अब गणेश को अपने साथ ले जा कर रहेंगे।
पति पत्नी दोनों गाव के सरपंच के पास गए और बोले, साहूकार उनके पुत्र को वापस नहीं दे रहा है। सरपंच ने साहूकार और उसकी पत्नी को गणेश को साथ लेकर सरपंच के सामने प्रस्तुत होने की सूचना भेजी। साहूकर अपनी पत्नी और गणेश को लेकर आ गए।
तब सरपंच जी ने फैसला किया की साहूकार की पत्नी तथा दूसरी औरत जो गणेश को अपना पुत्र बोल रही थी, “उन्हे सूर्य देवता के सामने अपना आँचल फैला के खड़े हो जाना है, जिसके भी आँचल से गणेश के मुँह में दूध जाएगा गणेश उनका पुत्र कहलाएगा”।
दोनों औरतों अपना आँचल सूर्य देवता के सामने फैला के खड़ी हो गई, और प्रार्थना करने लगी। भगवान गणेश जी के आशीर्वाद से साहूकार की पत्नी के आँचल से दूध की धारा गणेश के मुह में आ गई। यह देखकर साहूकार और उसकी पत्नी बहुत खुश हुए, और सरपंच ने गणेश को साहूकार को सौप दिया। वहा खड़े सभी लोग गणेश जी की जयजयकार करने लगे।
बुधवार आरती | Budhwar Aarti
**आरती गणेश जी की**
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
पान चढ़े फूल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
**आरती युगल किशोर की**
आरती युगल किशोर की कीजै, तन-मन-धन, न्योछावर कीजै ।
गौर श्याम सुख निरखत रीझै, हरि को स्वरूप नयन भरी पीजै ।
आरती युगल किशो…
रवि शशि कोटि बदन की शोभा । ताहि निरिख मेरो मन लोभा।
ओढ़े नीलपीत पट सारी, कुंज बिहारी गिरवर धारी।
आरती युगल किशो…
फूलन की सेज फूलन की माला, रत्न सिंहासन बैठे नंदलाला ।
मोर मुकुट मुरली कर सोहे, नटवर कला देखि मन मोहे ।
आरती युगल किशो…
कंचन थार कपूर की बाती, हरि आए निर्मल भई छाती।
श्री पुरुषोत्तम गिरवरधारी, आरती करें सकल ब्रजनारी ।
आरती युगल किशो…
नंदनंदन ब्रजभान किशोरी, परमानंद स्वामी अविचल जोरी।