अधिक मास हर तीसरे साल पड़ता है। मलमास में भगवान विष्णु की पूजा पाठ किया जाता दान – पुण्य का कार्य किया जाता है। और मलमास के समय किसी भी शुभ कार्य शादी – विवाह, मुंडन, नए बिसनेस का प्रारंभ नहीं किया जाता है।
मलमास या अधिक मास को पुरषोतम मास के नाम से भी जाना जाता है। अधिक मास से पुरषोतम मास बनने के बारे में अनेक पौराणिक कथाये और मान्यताए है।
पहली कथा
पौराणिक कथाओ के अनुसार सभी 12 महीनों के अलग-अलग स्वामी थे। लेकिन अधिक मास किसी भी महीने का स्वामी नहीं माना जाता था। इसीलिए अधिक मास को मलमास कह कर उसकी निंदा की जाने लगी।
अपने इस नाम से और उपहास से मलमास बहुत दुखी हुआ, और वह भगवान विष्णु के पास जा पहुँचा। वहाँ पहुँच कर उसने भगवान विष्णु से लोगो द्वारा उसके निंदा के बारे में बताया।
मलमास की बात सुनकर भगवान विष्णु ने बोला आज से मै तुम्हारा स्वामी हु, और मुझे पुरषोतमं के नाम से जाना जाता है। आज से यही नाम मैं तुम्हें देता हूँ। अब से तुम्हें पुरषोतम नाम से जाना जाएगा।
और जो भी मनुष्य पुरषोतम मास में पूजा पाठ, दान, धर्म, दूसरों की सहायता, गरीबों की मदद, वृद्ध लोगों को सहारा का कार्य करेगा, उसे मेरा आशीर्वाद प्राप्त होगा।
दूसरी कथा
दूसरी मान्यता यह है, की दैत्यराज हिरणाकश्यप ने परम पिता परमेश्वर ब्राह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए, कठोर तपस्या की थी। हिरणाकश्यप की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्राह्मा जी ने दर्शन दिया और, वरदान मांगने को कहा।
तब हिरणकश्यप ने ब्राह्मा जी से वरदान में मांगा की “मेरी मृत्यु आपकी बनाई हुई सृष्टि में किसी से न हो, न मै मनुष्य से मरू, न ही किसी पशु – पछी से, न ही मै किसी देवता से, न ही मेरी मृत्यु रात्रि में न ही दिन में, और न ही आपके बनाए 12 महीनों में, हर युद्ध में मै विजयी रहूँ और कोई मेरा युद्ध में सामना न कर पाए”।
हिरणकश्यप के इच्छानुसार ब्रह्मा जी ने उसे वदान दे दिया, और वह अंतर्ध्यान हो गए। वरदान पाकर हिरणाकाश्यप ने यह धारणा बना लिया की उसे अब कोई मार नहीं सकता है, और वह दूसरों पर अत्याचार करने लगा।
अब वह भगवान विष्णु जगत के पालनहार को नही मानता था, तथा जो भी भगवान विष्णु को मानता उसे मृत्यु की सजा देता था। हिरणकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु को हीं मानता था, तथा उनकी आराधना भक्ति में हमेसा लगा रहता था।
जब यह बात हिरणकश्यप को पता चली तो उसने प्रहलाद को जान से मारने की कोशिश की। वह जब भी प्रहलाद को मारने के लिए सैनिकों को भेजता था, हमेशा प्रहलाद बच जाता था।
एक दिन जब हिरणकश्यप ने सैनिकों को प्रह्लाद को मारने का आदेश दिया, और प्रहलाद से बोला “बता तेरा भगवान कहाँ है जो तुझे बचा ले”। हिरणकश्यप का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने 12 महीनों के अलावा 13 वे महीने मलमास का निर्माण किया।
और गोधूलि बेला में भगवान विष्णु नृसिंह (आधा शरीर मनुष्य का तथा आधा पशु का) का रूप धारण कर एक खंभे से निकले के आये, और अपने नाखूनों से हिरणकश्यप का शरीर चीर – फाड़ कर उसका वध कर दिया।