चैत्र पूर्णिमा हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण तिथि है, जो हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र माह (मार्च) की पूर्णिमा के दिन आती है। यह तिथि अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि इस दिन हनुमान जयंती भी मनाई जाती है, जो भगवान हनुमान के जन्मोत्सव के रूप में जानी जाती है।
चैत्र पूर्णिमा महत्व | Chaitra Purnima Mahatva
प्राचीन काल से चैत्र पूर्णिमा को विशेष माना जाता है, और इस दिन लोग व्रत रखते हैं, पूजा-पाठ करते हैं तथा विशेष रूप से भगवान हनुमान जी की आराधना करते हैं। हनुमान जयंती की वजह से इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है।
चैत्र पूर्णिमा के दिन कई धार्मिक अनुष्ठान और परंपराएं निभाई जाती हैं:
- गंगा स्नान: इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि गंगा स्नान से भक्तों के सभी दुष्कर्म नष्ट हो जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- दान-पुण्य: इस दिन दान-पुण्य का भी बहुत महत्व है। लोग अन्न, वस्त्र, धन आदि का दान करते हैं। विशेष रूप से गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करना पुण्य का कार्य माना जाता है।
- व्रत और उपवास: चैत्र पूर्णिमा के दिन सभी भक्त व्रत रखते हैं क्योंकि व्रत रखने से मन और आत्मा की शुद्धि होती है और भगवान का आशीर्वाद मिलता है।
चैत्र पूर्णिमा 2025 | Chaitra Purnima 2025
2025 में चैत्र पूर्णिमा 12 अप्रैल, शनिवार को मनाई जाएगी, जो हनुमान जयंती के रूप में विशेष महत्व रखती है। इस पावन तिथि पर सभी भक्त भगवान हनुमान की पूजा-अर्चना करते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों का पालन करते हैं।
चैत्र पूर्णिमा की कथा | Chaitra Purnima Ki katha
चैत्र पूर्णिमा हिंदू धर्म में न केवल धार्मिक अनुष्ठानों और पर्वों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ भी हैं जो इस तिथि को विशेष महत्व प्रदान करती हैं। इनमें से दो प्रमुख कथाएँ भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार और भगवान हनुमान के जन्म से संबंधित हैं।
मत्स्य अवतार कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, चैत्र पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। इस अवतार का उद्देश्य पृथ्वी को जल प्रलय से बचाना था। एक नगर में एक राजा थे, जिनका नाम सत्यव्रत मनु था। वे भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे और भगवान विष्णु उनकी आराधना से प्रसन्न थे।
एक बार धरती पर जल प्रलय आने वाला था। भगवान ने एक छोटी मछली का रूप लिया और किसी कारणवश वह मछली राजा के जलपात्र में आ गई। मछली ने राजा से कहा कि वह उसे सुरक्षित स्थान पर ले जाएं।
राजा मनु ने उसे अपने महल के तालाब में रख दिया, लेकिन कुछ दिनों बाद वह मछली बड़ी हो गई और महल का तालाब उसके लिए बहुत छोटा पड़ गया। फिर राजा ने उसे समुद्र में छोड़ दिया। तब मछली ने अपना वास्तविक रूप प्रकट किया और कहा कि वह भगवान विष्णु हैं। उन्होंने राजा मनु को बताया कि जल्द ही जल प्रलय आने वाला है, जिसमें उनके राज्य के सभी लोग और जीव-जंतु नष्ट हो जाएंगे।
भगवान विष्णु ने राजा को एक विशाल नाव बनाने का निर्देश दिया और कहा कि वह नाव इतनी बड़ी होनी चाहिए कि उसमें नगर के सभी लोग और जीव-जंतु आ सकें। जल प्रलय के समय, भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार में आकर उस नाव की रक्षा की और उसे सुरक्षित स्थान पर ले गए, जिससे पृथ्वी पर जीवन फिर से स्थापित हो सका।