देवी काली हिन्दू धर्म की एक प्रसिद्धह देवी है, इन्ही की पूजा को काली पूजा की संज्ञा दी जाती है। चतुर्भुजधारी माँ काली अपने एक हाथ में कटा हुआ सिर और गले में मूँद की माला मे देखने में बहुत ही भयानक लगती है। परंतु माँ काली विनाश की शक्ति या असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक मानी जाती है।
- यह पर्व हर साल अक्टूबर माह के अंत या नवंबर माह के शुरुआत में अमावस्या तिथि को मनाया जाता है।
- काली पूजा मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा, असंम बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है।
- काली माँ की पूजा को श्यामपुजा और कालरात्रि पूजा भी कहा जाता है।
- सप्ताह का शुक्रवार का दिन माँ काली की पूजा का दिन माना जाता है।
- माँ काली की पूजा 2 तरीके से होती है।
- पहले तरीके में माँ का तिलक आदि कर फल फूल चढ़ा के ढोल नगाड़े से की जाती है।
- दूसरे तरीके में माँ काली को तंत्र-मंत्र के साथ बलि देकर की जाती है।
- माँ काली की पूजा अपने पड़ोसी देश बांग्लादेश एवं नेपाल में भी होती है।
काली पूजा 2024 | Kali Puja 2024 Date
साल 2024 में काली पूजा 31 अक्टूबर को गुरुवार के दिन होगी। पूजा का समय रात 11:39 बजे से 12:28 बजे तक रहेगा।
महत्व
देवी काली नकरात्मक शक्तियों का नाश और असत्य पर सत्य के विजय का प्रतीक है। मान्यता है की देवी काली बहुत ही शक्तिशाली है, और वह अनैतिक कार्यो को करने वाले का क्रूरतापूर्वक उसका वध कर देती है। माँ काली ने ऐसे ही किसी अनैतिक कार्यों को करने वाले राक्षस को उसके कृत्य के कारण उसके मुंडी काट उसको गले में धारण कर लिया था। असत्य पर सत्य पर विजय के रूप में माँ काली की पूजा होती है।
माँ काली की छवि से क्या प्रतीत होता है?
- देवी काली का काला रंग – माँ काली का काला रंग उनकी उग्रता, क्रूरता, प्रकृति और सत्य का प्रतीक है।
- गले में मुंड की माला – सत्यता का प्रतीक।
- खुले हुए बाल – सभी सभ्यताओ के स्वतंत्र होने का प्रतीक माना जाता है।
- मैया की तीन आँख – मान्यता है की माँ की तीनों आँखे सूर्य चंद्र और अग्नि का प्रतीक है।
- एक हाथ में एक मूँद, और एक हाथ में अभयमुद्र – एक हाथ में मूँड पूर्ण रूप से ज्ञान काप्रतीक है व दूसरे हाथ की अभयमुद्र आशीर्वाद मुद्रा है।
काली पूजा का इतिहास
काली पूजा की शुरुआत का श्रेय ऋषि कृष्णानन्द अगवमनिशा जी को जाता है। काली पूजा सार्वजनिक रूप से लगभग 16 वी शताब्दी से मानी जाती है। यह त्योहार इस शताब्दी से पूर्व इतना व्यवहारिक रूप से नहीं मनाया जाता था।
समय के साथ इस त्योहार की लोकप्रियता बढ़ती गई, और 18 वी में शताब्दी के राजा ने अपने क्षेत्र बंगाल में काली पूजा त्योहार का प्रचार करवाया। अब तो काली पूजा बंगाल, कोलकाता, ओडिशा में बहुत ही उत्साह से मानायी जाती है।
भारत के राज्यों में काली पूजा व पंडाल
दिल्ली में काली पूजा व पंडाल कहाँ पर लगते है
- दिल्ली मे कई स्थानों पर काली पूजा होती है, और पंडाल भी लगते है। वे सभी भक्त या बंगाली जो काली पूजा करते है, वो इन स्थानों पर जाकर अपना त्योहार मनाते है।
- काली पूजा नई दिल्ली कालीबाड़ी में होती है, आप यहाँ जा सकते है यहाँ जाने की लिए आवश्यक यातायात सुविधा बस, ऑटो आसानी से उपलब्ध हो जाते है।
- इसके अलावा नोएडा क्लब जो की सेक्टर 26 में यहाँ भी कालीबाड़ी है। और यहाँ भी काली पूजा होती है और यहाँ जाने के लिए भी आवश्यक यातायात साधन उपलब्ध है।
- इसके अलावा दिल्ली का चितरंजन पार्क में कालीमंदिर है। यहाँ सभी बंगाली व माँ काली के सभी भक्तो की भीड़ काली पूजा के रात्री यही देखने को मिलती है।
- अगर आप इन सब क्षेत्रों से दूर से रहते है, तो इसके अतिरिक्त दिल्ली वासियों के लिए एक और विकल्प है। आप काली पूजा देखने और उसमे भग लेने के लिए द्वारका सेक्टर 12 में जा सकते है। यहाँ जाने के लिए सभी यातायात के साधन उपलब्ध है आप यहाँ आसानी से जा सकते है।
कोलकाता के काली पूजा के पंडाल
दक्षिणेश्वर काली मदिर
दक्षिणेश्वर काली मंदिर कोलकाता में स्थित यहाँ का सबसे बडा मंदिर है। इस मंदिर में काली पूजा के दौरान भक्तों का जमवाडा लग जाता है। अगर आप कोलकाता जाते है तो इस मंदिर में दर्शन करने अवश्य जाए। यहाँ पर पर्यटन पर आये लोग जाते है, और इसके अलावा यहाँ पर आपको काली माँ के भक्तों की उमड़ती भीड़ देखने को मिलेगी।
हजार हाट काली मंदिर
कलकत्ता में स्थित हजार हाट काली मंदिर में माँ काली की भव्य मूर्ति विराजमान है। माँ काली की इस प्रतिमा में इनके हाथ हजार की संख्या में है और काली पूजा के दौरान यहाँ भक्तों की भीड़ लगती है।
पश्चिम बंगाल के काली पूजा के पंडाल
पश्चिम बंगाल में काली पूजा बहुत ही उत्साह और धूम धाम के साथ मनाई जाती है। यहाँ पर आपको काली पूजा और दुर्गा पूजा के दौरान बहुत बड़े-बड़े व 100 से 120 पंडाल देखने को मिलते है। पश्चिम बंगाल के नैहोती में सभी क्षेत्रों में काली पूजा के बड़े बड़े पाण्डाल लगते है, उत्साह से मनाई जाती है।