हरियाली तीज हर साल सावन माह के शुक्ल पक्ष की तीसरे तिथि को मनाया जाता है। इस उत्सव का मुख्य उद्देश्य भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक होता है, और इसे धूमधाम से मनाया जाता है। सभी व्रती महिलाएं हरियाली तीज पर हिन्दू पंचांग की तिथि के अनुसार अपने घरों में भगवान शिव और पार्वती की पूजा करती हैं।
- हरियाली तीज से पहले विवाहित महिलाओ के मायके से सुहाग का समान और मिठाई, फल आदि उसके ससुराल भेजने का विधान है, जिसे ‘सिंधारा’ कहा जाता है।
- जब यह समान महिला के मायके से आता है, तो उसे ससुराल में बाँट दिया जाता है।
- उसी दिन महिला के मायके वाले उसके ससुराल से उसको मायके ले जाते है।
- मायके जाकर ही महिला हरियाली व्रत व पूजा विधि विधान से अपने जीवनसाथी की लंबी आयु और उसकी सफलता के लिए रखती है।
- इसके बाद महिला अपने घर जाकर अपने पुरानी दोस्तों और सहेलियों के साथ मस्ती करती है।
- हरियाली तीज को श्रावण मास में आने के कारण श्रावण तीज और छोटी तीज के नाम से भी जाना जाता है।
- यह त्योहार उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड आदि राज्यों बहुत ही उत्साह से मनाया जाता है।
हरियाली तीज 2024 | Hariyali Teej 2024 Date
साल 2024 मे हरियाली तीज 7 अगस्त दिन बुधवार को मनाई जाएगी। तिथि का आरंभ 6 अगस्त 2024 की शाम 7:52 मिनट पर होगा, और समाप्ति 7 अगस्त 2024 की शाम 10:05 मिनट पर होगी।
पूजा विधि | Puja Vidhi
- हरियाली तीज के दिन आपको प्रातः काल स्नान आदि कर व्रत का संकल्प ले।
- पूजा शाम को चंद्रोदय के साथ होती है, और पूरी रात जागरण होता है।
- इसके बाद बालू या मिट्टी से बनाई हुई भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति की स्थापित करे और गंगाजल से छिड़के।
- इसके बाद एक घी का दीप प्रज्ज्वलित करे।
- अब तिलक करे और पुष्प की माला अर्पित करे।
- माता पार्वती को शृंगार का सामना अर्पित करे।
- अंत में माता पर्वती व भोलबाबा को भोग लगाएँ।
- हरतालिका तीज की कथा करे।
- अंत में कथा के बाद आरती करे।
हरियाली तीज कथा | Hariyali Teej Katha
इस कथा में माता पार्वती के भगवान शिव से पुनर्मिलन से संबंधित भी घटनाएँ है। मान्यता है की माता पार्वती भगवान शिव को अपने पति के रूप में उन्हे पाना चाहती थी। क्यों की माता पार्वती ही, पूर्व जन्म में माता सती थी, और भगवान शिव की अर्धागनी। इसीलिए वह शिव को पाने के लिए हमेशा पूजा, व्रत और ध्यान करती थी।
पार्वती जी शादी योग्य हो गई थी, तो उनके पिता ने उनका विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया था। यह समाचार सुनते है पार्वती अत्यंत दुखी हो गई, और उनके मन अत्यंत बुरे ख्याल आने लगे। जब उन्हेाने अपनी परेशानी का कारण अपनी प्रिय सखी को बताया, तो उसने कहा ‘राजकुमारी आप परेशान न हो, मै इसका कोई न कोई उपाय अवश्य निकाल लूँगी’।
अब माता पार्वती की सखी ने एक युक्ति बनाई, और राजकुमारी से बताया ‘राजकुमारी हम आपको यहाँ महल से काफी दूर एक जंगल में ले चलेंगे, जहा आपके पिता आपको ढूंढ भी नहीं पाएंगे, और आप वहाँ आराम से भगवान शिव की तपस्या कर उन्हे प्रसन्न कर उनसे अपनी इच्छा बता सकती है।
यह युक्ति पर्वती को अच्छी तो लगी, परंतु उन्हे डर था महल से ऐसे जाने का परिणाम गलत न हो। डरते-डरते उन्होंने अपने सखियों की बात मान लिया, और एक घोर जंगल में चली गई।
जंगल जाकर उन्होंने मिट्टी से भगवान शिव की प्रतिमा बनाकर, बिना अन्न जल ग्रहण किए कठोर तपस्या की। और एक दिन उनकी तपस्या सफल हुई, और उन्हे भगवान शिव ने स्वीकार कर लिया पत्नी के रूप में ।
इधर जब पार्वती जी महल में नहीं मिली, तो उनके पिता सैनिक लेकर पार्वती को ढूढने निकल पड़े। ढूढते-ढूढते वह उसी जंगल में जा पहुचे, जहां पार्वती जी तपस्या के लिए गई थी। पार्वती जी को जंगल में देखकर उन्होंने उन्हे साथ महल चलने की आज्ञा दी।
परंतु पर्वती जी उनके साथ चलने से मना कर दी, और बोली पिता जी “मैंने भगवान शिव को अपना पति मान लिया है, और मै उन्ही से विवाह करना चाहती हूँ।“ शिव को पाने के लिए मैंने कठोर तपस्या की है, और उन्होंने मुझे स्वीकार भी किया है।
अगर आप चाहते है की मै आपके साथ महल चलू, तो आपको मेरा विवाह, भगवान शिव के साथ करना होगा। पार्वती जी की जिद के आगे, उनके पिता को हार माननी पड़ी। और अब वह शादी के लिए मान गए।
और महल जाकर उन्होंने शुभ मुहूर्त में भगवान शिव और माता पार्वती की शादी करा दी, और पुत्री को उपहार देकर विदा कर दिया।