हरतालिका तीज हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीय को आती है। इस व्रत को कुवारी कन्या सुगोग्य वर पाने के लिए और सुहागन स्त्रिया अपने पति की दीर्घायु और उनकी सफलता के लिए भोलेनाथ और माता पार्वती की पूजा करती है।
- हरतालिका तीज मुख्य रूप से महिलाओ का एक मुख्य त्योहार है जो अपनी पति की सफलता और कामना के लिए करती है।
- इस त्योहार को उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बेंगाल में मुख्य रूप से मनाया जाता है।
- हरतालिका तीज व्रत को निर्जला व्रत रखा जाता है, और इसमे 5 बार पूजा की जाती है।
- इस व्रत का महत्व इसीलिए है की माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए किया था।
- हरतालिका तीज को दक्षिण भारत में गौरी हब्बा नाम से जाना जाता है।
- इस त्योहार को हरियाली तीज व कजरी तीज की तरह ही मनाया जाता है।
हरतालिका तीज 2024 | Hartalika Teej 2024
हरतालिका तीज 2024 में 6 सितंबर 2024 दिन शुक्रवार को पड़ रही हैं। इस दिन पूजा का सुबह मुहूर्त सुबह 6 बजे से 8 बजे तक है।
हरतालिका तीज की तिथि का आरंभ आरंभ 5 सितंबर को रात्री 12:24 मिनट पर होगा, और समाप्ति 6 सितंबर 2024 की शाम को 3:6 तक रहेगा।
पूजा सामग्री
माता पार्वती और शिव जी की प्रतिमा, एक आसन, जनेव, रोली, सुपारी, 5 तरह के फल, पुष्प, घी, दीपक, कलश, गंगाजल, अक्षत, धूप, दूर्वा, कपूर,
पूजा विधि
- सबसे पहले व्रत के दिन नित्य को खत्म कर स्वच्छ वस्त्र धारण करे।
- अगर संभव हो तो भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा मिट्टी की अवश्य बनाएँ।
- इसके बाद भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की प्रतिमा के आगे व्रत का संकल्प ले।
- भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती के सामने दीप जलाए और तिलक कर।
- दीप के बाद उन्हे पुष्प की माला और पुष्प अर्पित करे।
- पार्वती माँ का शृंगार अर्पित करे।
- उसके बाद भोग लगाए।
- भोग लगाने के बाद कथा करे।
- अंत में भोलनाथ और माता की आरती अवश्य करे।
हरतालिका व्रत कथा | Hartalika Teej Vrat Katha
पौराणिक कथाओ के अनुसार जब माता पार्वती विवाह योग्य हो गई, तो उनके पिता को उनके विवाह की चिंता होने लगी। इसी चिंता को देखते हुए नारद मुनि एक बार भगवान विष्णु से पार्वती की शादी का प्रस्ताव लेकर गिरिराज के पास आयें ।
नारद मुनि का प्रस्ताव सुनकर गिरिराज (पार्वती माता के पिता) ने भगवान विष्णु का पार्वती की शादी का प्रस्ताव मान लिया, और शादी की हामी भर दी। यह समाचार जब माता पार्वती को मिला तो अत्यंत चिंतित हो गई, प्राण त्यागने का विचार करने लगी, क्यूकी पार्वती मैया भगवान शंकर को अपना पति मान चुकी थी, और उनसे ही विवाह करना चाहती थी।
पार्वती जी को परेशान देखकर, उनकी सहेलियों से उनकी परेशानी का कारण पूछा। तब पार्वती मैया ने बोला, ‘मै तन मन धन से भगवान शिव को अपने पति के रूप में स्वीकार कर चुकी हूँ और मै उन्ही से विवाह भी करना चाहती हूँ,
परंतु पिता जी मेरा विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया है, अब तुम ही बताओ मै क्या करू। तब उनकी सखियों ने कहा, इसका समाधान है मेरे पास, ‘हम आपका हरण करके लेकर जगल में ले जाएंगे, वहाँ आप भगवान शिव की तपस्या व आराधना भक्ति भाव से कर पायेंगी। आपके तपस्या और भक्ति से भगवान शिव अवश्य प्रसन्न होंगे, और आपकी मनोकामना पूर्ण मे करेंगे।
पार्वती मैया ने अपनी सखियों की बात मान लिया, और वह जंगल में चली गई। जहा जाकर उन्होंने भगवान शिव की निर्जला कठोर तपस्या की और पार्वती जी की तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हो गए, और वह उन्हे पति स्वरूप में मिलेंगे, यह आशीर्वाद देकर अतर्ध्यान हो गए।
जब पार्वती जी महल में नहीं मिली, तो उनके पिता गिरिराज परेशान हो गए और उन्हे ढूढने जंगल की ओर निकल पड़े। जंगल में उन्हे जब पार्वती जी दिखी, तो उन्होंने उनके महल से जंगल कैसे और क्यूँ आई कारण पूछा।
तब पार्वती जी ने कहा उन्होंने ‘भगवान शिव को अपने पति के रूप में मान लिया है, और वह विष्णु जी से विवाह नहीं करना चाहती है। उनकी यह बात सुनकर गिरिराज माता पार्वती की बात मान गये, और उन्होंने भगवान शिव से शादी धूमधाम से करा के विदा किया।
इस व्रत को हरतालिका व्रत इसीलिए कहा जाता है क्यू की, भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए माता पर्वती की सहेलियों ने उनका हरण किया था। इसीलिए इस व्रत को हरतालिका व्रत कहा जाता है।