माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा तिल से की जाती है, और तिल को दान में भी दिया जाता है। षटतिला का अर्थ होता है “छह तिल”। इस एकादशी के दिन तिल की सहायता से सभी कार्य किए जाते हैं। इस एकादशी को अन्य नामों में भी जाना जाता है, जैसे पापहरिणी एकादशी।
षटतिला एकादशी 2024 | Shattila Ekadashi 2024
2024 में षटतिला एकादशी 6 फ़रवरी को मंगलवार को पड़ रही है। इस एकादशी का आरंभ 5 फ़रवरी को शाम 5:24 मिनट पर होगा, और समाप्ति 6 फ़रवरी को 4:07 मिनट पर होगी।
महत्व
षटतिला एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है, और इससे आपके शारीरिक और मानसिक कष्ट दूर हो जाते हैं। घर में कभी भी धन, धान्य, और रुपये की कमी नहीं होती।
षटतिला एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में एक ब्राह्मण महिला रहती थी। ब्राह्मणी महिला भगवान विष्णु की बहुत बड़ी भक्त थी। परंतु वह कभी किसी को भोजन या अन्न दान नहीं देती थी। एक बार श्री हरि विष्णु ने ब्राह्मणी के घर एक साधु बन कर गए और उससे भिक्षा मांगने लगे।
ब्राह्मणी ने भिक्षा नहीं दिया और उनको, एक मिट्टी का टुकड़ा उठा कर दे दिया। ब्राह्मणी द्वारा दी हुई मिट्टी लेकर भगवान विष्णु अंतर्ध्यान हो गए।
जब ब्राह्मणी की मृत्यु हुई और वह बैकुंठ धाम गई, तो वहाँ उसे वहाँ एक खाली टूटी झोपड़ी मिली और एक आम का पेड़। यह देख वह निराश हो गई और भगवान विष्णु से बोली – मैंने ऐसा पृथ्वी पर कौन सा पाप किया था, जो ऐसा फल मिल रहा है।
तब भगवान ने कहा तुमने पृथ्वी पर कभी किसी को भोजन नहीं कराया, और ना ही अन्न दान दिया इसीलिए ऐसा फल मिला है। यह सुन ब्राह्मणी को अपनी गलती पर पछतावा हुआ, और वह अपने भूल का प्रायश्चित करने का उपाय पूछने लगी।
भगवान ने उसे उपाय बताया – जब देवकन्याएँ बैकुठ धाम आये और द्वार खोलने को बोले तो तुम द्वार तभी खोलना, जब वह तुम्हें षटतिला एकादशी का व्रत के बारे में बताएँ। ब्राह्मण महिला ने ऐसा ही किया।
जब देव कन्याएँ आई तो उसने द्वार नहीं खोला और उन्हे एकादशी व्रत की विधि बतानी पड़ी। ब्राह्मण महिला ने एकादशी का व्रत किया और उसकी झोपड़ी अन्न से भर गई।