सावन या श्रावण माह, हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, पाँचवें महीने में पड़ता है। इस दिन भगवान शिव का व्रत पूजा आराधना की जाता है।
कथा
प्राचीन काल में किसी ग्राम मे एक साहूकार अपनी पत्नी के साथ रहता था। साहूकार भगवान शिव का भक्त था, और वह प्रत्येक सोमवार को व्रत पूजा व शाम को मंदिर में घी का दीपक जलाता था। साहूकार का घर धन धान्य से भरा था, लेकिन उसके वंश को आगे बढ़ने वाला कोई नहीं था, इसीलिए वह मन ही मन दुखी रहता था।
साहूकार की पूजा भक्ति भाव को देखकर एक बार पार्वती मैया ने भगवान शिव से कहा – हे प्रभु ये साहूकार आपकी कितने सालों से पूजा कर रहा है, अब आपको इसे पुत्र प्राप्ति का वरदान दे देना चाहिए।
तब भगवान शिव ने माता पार्वती से उत्तर दिया – प्रत्येक मनुष्य को उसके कर्मों का फल अवश्य मिलता है। साहूकार के ये पूर्व जन्म के कर्म है, इसीलिए उसे इस जन्म में पुत्र प्राप्ति का सुख प्राप्त नहीं है।
लेकिन माता पार्वती ने भगवान शिव की बात नहीं मानी, और साहूकार को पुत्र का वरदान देने की जीद करने लगी। माता पार्वती की बात मानकर भगवान शिव साहूकार को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिए, और बोले इसकी आयु मात्र 12 वर्ष ही होगी।
जब भोलनाथ व माता पार्वती बात कर रहे थे, तब साहूकार उनकी बातें सुन रहा था। इसीलिए उनकी बात सुनकर वह ना तो दुखी हुआ ना ही खुश। कुछ दिन बीते और साहूकार के घर सुंदर से बालक ने जन्म लिया।
समय बितता रहा और बालक की आयु 11 वर्ष की हो गई। साहूकार को उसके पुत्र की आयु 12 वर्ष है यह बात पता थी, लेकिन वह पुत्र को अपने सामने मरता हुआ नहीं देख सकता था। इसीलिए उसने अपने पुत्र को काशी विद्या प्राप्ति के लिए भेजने का निर्णय लिया।
इसके लिए साहूकार ने अपने पत्नी के भाई को बुलवाया, और उसे अपने भांजे के साथ काशी जाने का निर्णय लिया। बालक का मामा आया और अपने भांजे को लेकर काशी जाने को तैयार हो गया। काशी जाते समय साहूकार ने बालक और उसके मामा को रास्ते में पूजा हवन में दान करते हुए जाने को बोला।
साहूकार के पुत्र व उसके मामा ने ऐसा ही किया। जब वह काशी जा रहे थे तो रास्ते मे उन्हे एक नगर मिला, जहां वह विश्राम करने के लिए रुके। जिस नगर में वह रुके थे, वहाँ राजा की पुत्री की शादी थी। लेकिन शादी जिस लड़के से हो रही थी, वह काना था।
दूल्हे के पिता ने सोचा क्यू न मै अपने काने पुत्र की जगह इस साहूकार के पुत्र को शादी के मंडप में बैठा कर शादी करा दु, और विदाई मै अपने पुत्र के साथ करा के ले जाऊंगा। यह सोच उसने साहूकार के पुत्र को पैसे का लालच दिया।
लेकिन साहूकार का पुत्र उसकी बात नहीं माना। फिर दूल्हे के पिता ने लड़के के मामा को लालच दिया और वह मान गए। अब साहूकार के पुत्र को भी शादी करनी पड़ी। लेकिन उसने इस बात से इनकार कर दिय, और मौका मिलते राजकुमारी के दुपट्टे पर सारी सच्चाई लिख दिया।
“आपकी शादी जिसके साथ तय थी वह लड़का काना है, इसीलिए दूल्हे के पिता ने यह बात छुपाने के लिए मेरे मामा जी को धन का लालच देकर शादी के लिए मनाया है। मै वह लड़का नहीं हु जिससे आपकी शादी तय हुई थी, परंतु आपकी विदाई उसी लड़के के साथ होगी। मै तो पढ़ने जा रहा हु काशी कल सुबह”।
जब यह समाचार राजकुमारी ने पढ़ा, तो अपने माता – पिता को बताया। सुबह दूल्हे के पिता विदाई करने आये, तो राजकुमारी के पिता ने उन्हे डांट कर भगा दिया। अब साहूकार का पुत्र और उसके मामा काशी पहुचे, तथा साहूकार का पुत्र विद्या ग्रहण विद्या ग्रहण करने लगा।
समय बितता रहा और वह दिन आ ही गया, जब उसकी आयु के 12 वर्ष पूर्ण होने को थे। इस दिन सुबह से साहूकार के पुत्र की तबीयत सही नहीं थी, इसीलिए वह अपने मामा से बोला – मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही है मै आराम करने जा रहा हूँ। मामा ने बोला- ठीक है जाओ आराम कर लो।
कुछ ही देर में लेटे लेटे साहूकार के पुत्र के प्राण निकल गए, और उसकी मृत्यु हो गई। जब उसका मामा उसे जगाने के लिए गया, तो उसने देखा भाँजा की मृत्यु हो चुकी है। यह देख वह तेजी से विलाप करने लगा।
जब वह विलाप कर रहा था, तो उधर से माँ पार्वती भोलनाथ के साथ कही जा रही थी। माँ पार्वती ने उसका विलाप सुनकर भोलेनाथ से प्रार्थना की उसका कष्ट दूर करे। तब भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा- पार्वती यह उसी साहूकार का पुत्र है, जिसकी आयु 12 वर्ष थी, जो आज पूर्ण हो गई है।
तब माता पार्वती ने कहा हे प्रभु साहूकर और उसकी पत्नी ने 12 वर्ष से लगातार आपका व्रत पूजा हवन यज्ञ कर रहे है, और आज तो इन्होंने प्रण कर रखा है, इनका पुत्र अगर सही सलामत नहीं आया तो ये लोग आज अपने प्राण त्याग देंगे।
माता पार्वती की बातें सुनकर भगवान शिव ने साहूकर के पुत्र को नया जीवन दिया। अब साहूकार का पुत्र उठ बैठ गया, और भगवान शिव जयजयकार करने लगा। अब मामा – भाँजा ने विचार किया की, अब उन्हे काशी आये 1 वर्ष हो गए है, और उन्हे अपने घर लौट जाना चाहिए।
जब वह लौट कर जा रहे थे तो रास्ते मे पुनः वही नगर पडा, जहा साहूकार के पुत्र की शादी हुई थी। नगर के राजा को सैनिकों ने साहूकार के पुत्र के नगर में आने की जानकारी दी। राजा ने साहूकार के पुत्र को महल में बुलवा लिया और धूम धाम से उसका स्वागत किया और अपनी पुत्री को उसके स्वामी के साथ विदा कर दिया।
जैसे ही साहूकार का पुत्र घर पहुचा, माता पिता उसे जिंदा देखकर खुशी से नाचने लगे और भगवान शिब की गुणगान करने लगे। उसी रात्री को साहूकार को स्वप्न आया “ मै तुम्हारे व्रत और तपस्या से प्रसन्न होकर तुम्हारे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान करता हूँ’
जो भी मनुष्य सच्चे मन से मेरी पूजा आराधना करता है, मै उसके सारे कष्ट को नष्ट कर देता हूँ।