पापमोचिनी एकादशी का अर्थ है, पापों का नाश करने वाली एकादशी। इस एकादशी में भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। तथा अनजाने में हुई गलतियों का निवारण होता हैं।
- यह व्रत चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी में रखा जाता है।
- एकादशी के दिन किसी का अपमान न करे, तथा ध्यान रहे आपकी वजह से किसी भी छोटे जीव को कष्ट न हो।
- व्रती को इस दिन किसी भी तामसिक भोजन का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- व्रत में व्रती को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
पापमोचिनी एकादशी 2024
पापमोचनी एकादशी 2024 में 5 अप्रैल (शुक्रवार) को है। मुहूर्त की शुरुआत 4 अप्रैल को सुबह 5 बजकर 14 मिनट पर होगी और समाप्ति 5 अप्रैल को दोपहर 01 बजकर 28 मिनट पर होगी।
पापमोचनी एकादशी पूजा विधि
- प्रारंभ में, सर्वप्रथम प्रातः काल उठकर स्नान आदि करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- इसके बाद, भगवान को गंगाजल से, पीतल या स्टील के पात्र में स्नान कराएँ।
- फिर, घी या तिल के तेल का दीपक जलाएं।
- अब, श्री हरि को वस्त्र अर्पित करें।
- इसके बाद, भगवान को चंदन का तिलक लगाएं, तथा पुष्प अर्पित करें।
- फिर, भगवान को जनेव और फल, माखन, मिश्री, तुलसी का भोग अर्पित करें।
- एकादशी के दिन भगवान विष्णु का ध्यान करे, और “ॐ नमो भगवते वसुदेवाय” का जाप अवश्य करे।
- अंत में, भगवान विष्णु की आरती करें।
पापमोचनी एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में रमणीक नामक एक वन था। इस वन में इन्द्र गंधर्व कन्यायो के साथ घूमने मनोरंजन के लिए जाते थे। एक बार एक तपस्वी ऋषि जिनका नाम मेधावी था, वे इसी वन में तपस्या कर रहे थे।
मेधावी ऋषि भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त और उपासक थे। मेधावी ऋषि की तपस्या और उपासन देख कर देवराज इन्द्र को ईर्ष्या होने लगी, और उसने कामदेव से कहा की वह ऋषि मेधावी की तपस्या भंग करने में उनकी सहायता करे।
कामदेव ने मेधावी ऋषि के पास एक मंजुघोषा नामक अप्सरा भेज दिया। मंजुघोषा ने अपने नृत्य और सुंदरता ने ऋषि मेधावी को मोहित कर लिया।
जब ऋषि मेधावी की तपस्या पूर्ण रूप से भंग हो गई, और वह पूर्ण रूप से मंजुघोषा से रति क्रिया में लिप्त रहते 57 वर्ष बीत गए। एक दिन मंजुघोषा को देवराज इन्द्र का संदेश आया, की अब उसे मेधावी ऋषि को छोड़ के देवलोक लौटना होगा।
यह संदेश सुन मंजुघोषा ने ऋषि मेधावी से आज्ञा मांगने गई। उसने ऋषि मेधावी से अपने देवलोक लौटने की समाचार दिया, और उसने अपनी सच्चाई भी बताई की उसे किस लिए भेजा गया था।
मंजुघोषा की बात सुन कर ऋषि मेधावी को अपनी भूल का आभास हुआ, और उनके तपस्या भंग करने तथा उन्हे छलने आई मंजुघोषा पर वह अत्यधिक क्रोधित हो गए।
क्रोध में उन्होंने मंजुघोषा को श्राप दे दिया, की वो अब से पिसाचनी बन जाएगी। ऋषि मेधावी की बात सुन कर मंजुघोषा कांपने लगी। मंजुघोषा ऋषि के चरणों में गिर के माफी मांगने लगी, और विनती करने लगी श्राप से मुक्ति का उपाय बताए।
मंजुघोषा को उसकी गलती का एहसास होने के कारण, मेधावी ऋषि ने उसे पापमोचनी व्रत रखने को कहा, और उन्होंने बोला भगवान की कृपा से तुम्हें इस श्राप से मुक्ति मिल जाएगी।
यह बोल मेधावी ऋषि अपने पिता च्यवन ऋषि के पास गए। वहाँ जाकर उन्होंने अपने साथ हुई घटना को बताया। ऋषि च्यवन ने अपने पुत्र को अप्सरा को श्राप देने के कारण घोर निंदा की, और उनसे हुई गलतियों का पश्चयताप करने के लिए उन्हे पापमोचनी एकादशी व्रत का आदेश दिया।
ऋषि मेधावी ने पश्चयताप के लिए पापमोचनी एकादशी व्रत को किया, और उसके प्रभाव से मंजुघोषा को पिसाचनी के रूप से मुक्ति मिल गई।
लाभ
- अनजाने मे हुई गलतियों से भगवान विष्णु के आशीर्वाद से मुक्ति मिलती है।
- इस व्रत को करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
- जीवन के सभी कष्ट का नाश होता है।
- आपकी अंदर नई ऊर्जा आएगी तथा व्यापार में सफलता मिलेगी।
- सामाज में मान – सम्मान बढ़ता है।
- आपकी सारी मनोकामना पूर्ण होती है।