नवरात्रि का छठा दिन माँ कात्यायिनी को समापित है, इस दिन माँ की आराधना से सुख संवृद्धि और जीवन खुशहाल बन जाता है।
- स्कन्द पुराण के अनुसार माँ कात्यायिनी की उत्पत्ति ईश्वर के क्रोध से हुई थी।
- माता को कात्यायिनी नाम प्राप्त हुआ क्योंकि वह ऋषि कात्यायन की पुत्री थी।
- माँ कात्यायिनी को गौरी, काली, शाकंभरी, चंडिका आदि नामों से जाना जाता है।
- चार भुजाओ वाली माँ कात्यायिनी के एक हाथ में कमल, आशीर्वाद की मुद्रा, तथा दूसरे हाथ में अस्त्र शस्त्र से शुशोभीत है।
- चार भुजाओ वाली माँ की सवारी सिंह है।
- माँ कात्यायिनी की पूजा का समय गोधूलि काल है।
- ऐसा माना जाता है की ब्रज की गोपियों ने भगवान कृष्ण को पाने के लिए, माँ कात्यायिनी का उपवास किया था।
माँ कात्यायिनी कथा
पौराणिक कथाओ के अनुसार एक कात्यायन ऋषि नाम के ऋषि थे। इन्होंने माँ आदिशक्ति को अपने संतान के रूप में प्राप्त करने के लिए, उन्होंने कठोर तपस्या की। महर्षि कात्यायन की तपस्या से आदिशक्ति प्रसन्न हुई।
आदिशक्ति ने ऋषि से वरदान मांगने को कहा, तो महर्षि कात्यायन ने आदिशक्ति से उनके घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लेने का वरदान मांगा। आदिशक्ति ने महर्षि कात्यायन को वरदान दिया, और अंतर्ध्यान हो गई।
कुछ दिनों बाद महर्षि कात्यायन के घर एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया, जिनके चहरे पर एक अलग ही प्रकार का तेज था। महर्षि कात्यायन की पुत्री होने के नाते माँ का नाम कात्यायिनी पड़ा।
माँ की उत्पत्ति से संबंधित एक और कथा है- माँ कात्यायिनी की उत्पत्ति ईश्वर के क्रोध से हुई थी, दुष्टों का नाश करने के लिए।
नवरात्रि के छठे दिन पूजा विधि
- सर्वप्रथम प्रातः काल स्नान आदि कर के स्वच्छ वस्त्र धारण करे।
- गंगाजल को पूजा स्थल पर छिड़के।
- माँ का रोली, चंदन से तिलक करे।
- इसके बाद हाथ मे पुष्प लेकर माँ का ध्यान करे, और पुष्प अर्पित करे।
- ध्यान मंत्र – “सिंहरुढा चतुर्भुजा कात्यायनी यशास्विनीम्।
स्वर्णवर्णा आज्ञाचक्र स्थिताम् षष्ठम् दुर्गा त्रिनेत्रम।।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजमि।
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालड़्कार भूषिताम।।“
- धूप दीप प्रज्ज्वलित करे।
- माँ को बादाम का हलवा, शहद, फल, पीले रंग की चीजें भोग लगा सकते है।
- दुर्गा सप्तसती का पाठ करे।
- अंत में माँ दुर्गा की आरती करे।
- पूजा के बाद क्षमा याचना अवश्य करे।
महिमा
- माँ कात्यायिनी के आशीर्वाद से विवाह में आने वाली अड़चने दूर होती है।
- मान-सम्मान यश की प्राप्ति होती है।
- किसी भी प्रकार के रोग, डर, संकट से छुटकारा मिलता है।
- स्वास्थय अच्छा रहता है, तथा मानसिक विकास होता है
- आपकी सारी मनोकामनाए पूर्ण होती है।