- प्रथम नवरात्रि को माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है।
- माँ शैलपुत्री शैलराज हिमालय की पुत्री है, इसीलिए माँ के इस भव्य स्वरूप को शैलपुत्री कहा जाता है।
- माँ शैलपुत्री को पार्वती नाम से भी जाना जाता है।
- माँ शैलपुत्री भगवान शिव की अर्धागनी है।
- माँ अपने एक हाथ में त्रिशूल तथा दूसरे हाथ में कमल धारण करती है।
- माँ शैलपुत्री का प्रिय सवारी नंदी नामक बैल है।
- माँ की पूजा में सभी नदियों, देवताओ, पुण्य तीर्थों का आवाहन किया जाता है।
- आवाहन से तात्पर्य ये है की आप माँ को किसी विशेष कार्य के लिए, अपने घर आने का निमंत्रण दे रहे है।
- पूजा के दौरान ध्यान मंत्र का जाप करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
- ध्यान मंत्र – ॐ देवी शैलपुत्रयै नमः।
माँ शैलपुत्री का जन्म कैसे हुआ?
पौराणिक कथा के अनुसार, महाराज दक्ष ने कठिन तपयस्या कर के आदिशक्ति को प्रसन्न किया। और उनसे वरदान स्वरूप मांगा की वो उसके यहा पुत्री के रूप में जन्म लेंगी।
वरदान के अनुसार आदिशक्ति का जन्म एक कन्या के रूप में राजा दक्ष के यहा हुआ। राजा दक्ष ने आदिशक्ति का नाम सती रखा। समय बीतता गया और सती विवाह योग्य हो गई।
पिता प्रजापति दक्ष ने सती के लिए स्वयवर आयोजित किया। स्वयंवर में सबको आमंत्रित किया, सिवाय भगवान शिव को। वो भगवान शिव को भगवान नहीं, एक प्रपंची अघोरी साधु मानते थे।
परंतु माता सती ने उन्हे ही अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया था। पिता के मना करने पर भी वह नहीं मानी, और भगवान शिव से विवाह कर लिया। विवाह से नाखुश पिता ने सती से अपने संबंध तोड़ लिए।
एक बार राजा दक्ष ने एक महायज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में अतिथि के रूप में सभी देवी देवता तथा ब्रह्मा विष्णु को आमंत्रित किया, लेकिन भगवान शिव तथा माता सती को आमंत्रित नहीं किया।
जब माता सती को पता चला की उनके पिता ने यज्ञ आयोजन किया है, तो उन्होंने भगवान शिव को यज्ञ में साथ चलने की जिद की। भगवान शिव ने समझाया की उन्हे इस यज्ञ के लिए आमंत्रण नहीं भेजा गया है, अतः उन्हे नहीं जाना चाहिए।
पर माता सती ने उनकी बात नहीं सुनी, और वह यज्ञ में बिना निमंत्रण के चली गई। वहा जाकर उन्होंने देखा उनके पिता राजा दक्ष ने सबको आमंत्रित किया है सिवाय उनके स्वामी भगवान शिव और माता सती के।
राजा दक्ष ने सती को बिना आमंत्रण के आने के कारण उन्हे बुरा भला सुनाया, तथा भगवान शिव के लिए अपशब्द का प्रयोग किया। यह सुन माता सती को बर्दास्त नहीं हुआ, और उन्होंने अपने योगाग्नि शक्ति से खुद को भस्म कर दिया।
बाद में माता सती का जन्म भगवान शिव से मिलन हेतु शैलराज हिमालय के यहा हुआ, इसीलिए इनका नाम माँ शैलपुत्री पड़ा ।
पूजा सामग्री –
आम के पल्लव, मिट्टी का कलश, रोली, मौली, गंगाजल, कलावा, अक्षत, जौ, शुद्ध जल, कलावा, गाय का गोबर, मिट्टी, बताशा, लाल चुनरी, लाल फूल, सुपाड़ी, नारियल, लौंग, कपूर, सिंदूर, फूल की माला, फल, माँ के शृंगार का सामान।
पूजा विधि
- सर्वप्रथम प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि कर के स्वच्छ वस्त्र धारण करे।
- माँ दुर्गा की प्रतिमा को आसन पर विराजमान करे, तथा शृंगार करे।
- इसके बाद कलश को गोबर से सजाए, और कलश स्थापना करे।
- इसके बाद माँ को पुष्प, रोली अर्पित करे।
- इसके बाद दीप प्रज्ज्वलित करे।
- भोग में माँ को शुद्ध देसी घी का हलवा जरूर चढ़ाए।
- इसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ करे।
- तत्पश्चात माँ दुर्गा की आरती करे।
- पूजा के पश्चात अंत में माँ से क्षमा याचना अवश्य करे।
किन वस्तुओ से परहेज करे ?
- प्याज लहसुन का सेवन नहीं करना है।
- मादक पदार्थों से दूर रहे।
- बाल तथा दाढ़ी नही कटवाया जाता है।
- नमक का सेवन नहीं करना है।
- सिलाई बुनाई का कार्य नहीं किया जाता है।
लाभ
- माँ शैलपुत्री के आशीर्वाद से मनचाहे वर की प्राप्ति होती है।
- माँ दुर्गा की पूजा करने से आपके घर में सुख शांति आती है।
- आपका घर हमेशा धन – धान्य से भरा रहेगा।
- आपकी सारी मनोकामना पूर्ण होती है।
- शरीर निरोग रहता है।
- जीवन के सारे कष्टों का नाश होता हैं।